" तेरा अस्तित्व क्या शहर गाँवों के बिना "
तेरा अस्तित्व क्या शहर गाँवों के बिना
मेरे गाँव की सोंधी खुश्बू ले आना हवा
शहर में खरीदे से भी कहीं मिलती नहीं
ईमारतें तो गगनचुम्बी शहर में बहुत सी
धूप की परछाईं तक कहीं दिखती नहीं ।
शहर में खरीदे से भी कहीं मिलती नहीं
ईमारतें तो गगनचुम्बी शहर में बहुत सी
धूप की परछाईं तक कहीं दिखती नहीं ।
बीत गई इक सदी देह को धूप सेंके हुए
भींगी लटें तक घुटे कक्ष में सूखती नहीं
खुले आँगन के लुत्फ़ को तरसता शहर
लगे व्योम से चाँदनी कभी उतरती नहीं ।
शहरी सड़कों से भली गंवईं पगडंडियाँ
आबोहवा गाँव सी यहाँ की लगती नहीं
लगे दिनकर को आसमां निगल है गया
किरणें मोहिनी सुबह की बिखरती नहीं ।
आबोहवा गाँव सी यहाँ की लगती नहीं
लगे दिनकर को आसमां निगल है गया
किरणें मोहिनी सुबह की बिखरती नहीं ।
भाँति-भाँति के शज़र यहाँ तनकर खड़े
किसी टहनी पर परिन्दों की बस्ती नहीं
क़िस्म-क़िस्म के गुल यहाँ खिलते बहुत
किसी टहनी पर परिन्दों की बस्ती नहीं
क़िस्म-क़िस्म के गुल यहाँ खिलते बहुत
फज़ां में महक़ रातरानी सी तिरती नहीं ।
लाना जमघट पीपल के घनेरे छांवों का
वैसी मदमस्त पवन शहर में बहती नहीं
वो पनघट की मस्ती झूले नीम डाल के
बुज़ुर्गों के चौपाल की हँसी गूँजती नहीं ।
वैसी मदमस्त पवन शहर में बहती नहीं
वो पनघट की मस्ती झूले नीम डाल के
बुज़ुर्गों के चौपाल की हँसी गूँजती नहीं ।
ना नैसर्गिक सौन्दर्य ना समरसता कहीं
स्वर्ग जैसा है,वास्तविकता दिखती नहीं
तेरा अस्तित्व क्या शहर गाँवों के बिना
स्वर्ग जैसा है,वास्तविकता दिखती नहीं
तेरा अस्तित्व क्या शहर गाँवों के बिना
बसती नीरसता आत्मीयता दिखती नहीं ।
शुद्ध जलवायु प्रकृति का आकर्षण भी
लाना,शहरी पर्यावरण में जो रहती नहीं
दम घुटता शहर में लाना अमन संग भी
बड़ी खुशियाँ भी उत्सव सी लगती नही ।
लाना,शहरी पर्यावरण में जो रहती नहीं
दम घुटता शहर में लाना अमन संग भी
बड़ी खुशियाँ भी उत्सव सी लगती नही ।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें