शुक्रवार, 14 जून 2019

छोड़ दे रूठना बरस झमाझम

छोड़ दे रूठना बरस झमाझम 

श्यामल-श्यामल मेघराज जरा
शुभग श्याम पताका फहराओ
मेघ लगाकर सूरमा मंडरा कर
जिद्दी धूप पर नैना बान चलाओ ।

आग बबूला  हो उग्र प्रभाकर  
हौले-हौले  आसमान से उतरे
प्रचण्ड ताप  संग तप्त  हवाएं
भरी दोपहरी  व्योम से बिफरे ।

बरसा कर  ज्वाला वर्चस्व का
धमक चक्रवात का दिखलाए
स्वेद निथारे आर्द्रता शरीर की
जगती का कण-कण तड़पाए ।

आकुल धरती का मर्म ना जाने
करती बिजली गिराकर घायल
गर्मी का प्रकोप उत्पात मचाये
छले पर्वत से टकराकर बादल ।

छप-छप कर के लुत्फ़  उठाएं
कागज की नाव चला कर हर्षें
चाय की चुस्की  गरम पकौड़ी
खायें खूब झूम  घटा ग़र बरसे ।

किस विरह में डूबी कारी घटा
क्यूं न रिमझिम फुहार बरसाए
छोड़ दे रूठना बरस झमाझम
नथुनों में सोंधी  ख़ुश्बू भर जाए ।

शुभग--सुन्दर

                  शैल सिंह

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