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''हिदुत्व वादी धारा के अटल जी''

हिदुत्व वादी धारा के अटल जी हिन्दू तन-मन हिन्दू धर्म का सम्मोहन सबमें अब जागा है देश प्रेम का ज्वार ना जिसमें वह  कितना बड़ा अभागा है। मातृ भक्त  वह  धन्य  पुरुष जो दिव्य  ज्ञान है दान मिला घट-घट  विष पी अमर हुआ जग को अमृत का पान पिला ।  किसने  ज्ञान प्रदीप जलाकर निशा   पंथ  में  किये  उजाले किसने सोते   से  झिंझोड़कर भटके मन  को कहा जगा ले।  किसने माँ की कसम दिलाकर पापी   पौरुष    को   धिक्कारा धर्म,सभ्यता,संस्कृति,संस्कार की अलख   जगाने   को  ललकारा।  किसमें  सूली   के  पथ चलकर है   निश्चय   का   प्रचंड  ज्वाल किसको कहने में शर्म ना आती हम  हिन्दू  हैं हिन्द  के   लाल।  जीवन    की   संकरी  गलियों  से जिसने,इतने अनुभव आज बटोरे उसकी    पारदर्शिता ,  पराकाष्ठा   तोलें  आज   पापी   और  छिछोरे।  किसने  माँ ...

जानें देश का हित किसमें

         जानें देश का हित किसमें  मोदी-मोदी बस मोदी का लहर जगा है जाग गई है जनता अब किस बात की देर भलाई सौंपो मोदी के हाथों में सत्ता, पंथ,जाति,धर्म का कुष्ठ रोग मिटा,खुला बुद्धि विवेक का पत्ता 'विजय 'चरण चूमता कद्दावर मोदी का देकर विपक्ष को धत्ता, इन्तज़ार लहरा रहा लाल किले पर हाथों मोदी के तिरंगा लत्ता चेत लो अब से भी वरना बह जायेगा देश ये जैसे पानी में गत्ता, दंगा,हिंसा करवाते राजनीतिक विरोधी लगता मोदी पर धब्बा सांप्रदायिक,नकारात्मक पहलू दर्शाना देख रहा सच्चाई रब्बा, एक जुट होगा वह दिन दूर नहीं अब जिस दिन देश का जत्था करिश्माई,स्वच्छ,निराले नेता पर वर्ग विशेष भी टेकेगा मत्था, बाकि है कसर थोड़ी यदि भ्रमित भाई भी रक्खें सिर पे हत्था कर विपक्षियों को अनसुना दिल मिला लें जैसे पान में कत्था, आशंका से घिरे बहकावे में बागीजन अंतर की सुनें अलबत्ता किसमें खुद नजर आता दूरदर्शिता, स्पष्टता,दृढ़ता,प्रतिबद्धता, फांस निकालो दिल से हो केवल तुम 'भारतीय' लिखा लो पट्टा बहुमत से जीताकर देखो भाई इक बार लगा लो ऐसा भी सट्टा,...
गूंज उठता है इक दर्द भरा गीत सुनी वादियों में जब हर सुबह हर शाम की ख़ामोशी में ढलती है, उभर उठता है ख्यालों में भी इक मासूम चेहरा जब सिसक कर दर्द जवां हो करवट बदलती है, मचल उठता है होठों पे चिर-परिचित सा नाम दरक कर जब जिंदगी लब से आह निकलती है ।

संजीवनी

        संजीवनी आज हृदय के द्वार पर हलचल मैंने नीर भरी आँखों से देखा पथ पर जाते एक बटोही को था जो प्रियतम के रूप सरीखा । सिमट गया आँचल में आकर पानी मान सरोवर का फीका देखो प्रणय के मुझ जैसे मतवाले मोती सी झर-झर गंगाजल का । डाली पर इतराती कलियाँ जो रवि की किरणों में खिलती हैं दुःख दर्द किसी के जीवन का वो मुस्काती अधरों से कहती हैं । सुमनों के प्रेमी हे भ्रमरा तुम उनक अंतर भावों को पढ़ लेना जो मूक कहानी कहती हों उनके प्रियतम से दूर देश में कह  देना । शब्दों में बिखराकर अन्तर गाथा शिलाओं की सतह पर लिखती हूँ पथ जाने वालों बतलाना उनको सपनीले विश्राम गेह को चलती हूँ । निर्भय मृत्यु की मुझ पर महिमा उसके तुमुल गर्जन से डरती हूँ पर सांसों के विश्रृंखल पल में भी मौत को संजीवनी दिया करती हूँ ।  

''गीत''

                 गीत बंजर उर में प्रीत जगे जो गीत बन गए जब से सच्चे तुम मेरे मनमीत बन गए ।        उन्मद यौवन था ढला शाम सा        जिजीविषा कुम्हलाई-कुम्हलाई        प्रतिफल में केवल छली गयी मैं         हर कलि थी आशा की मुरझाई । हसरतों की सोई कलियाँ फिर जाग गईं जब से बांहें तेरी गले का मेरे हार बन गईं ।       सुख दुःख की लड़ियाँ साथ लिए       टूटे नातों का मौन अभिशाप लिए       बढ़ रही अकिंचन थी जीवन पथ       पराजय का प्रतिक्षण ह्रास लिए। दुर्गम राहों पर ढेरों पुष्प अवतरित हो गए जब से उर मृदु गंध तुम उच्छ्वसित कर गए ।       रच दिया रीति में क्वाँरे  सपने       अंगों में रस घोल गई पुरवाई       यौवन की बगिया महक उठी       रससिक्त पुनः हो गई तरुणाई। अनुराग तेरे,मेरे अधरों के संगीत बन गए जब से ...

'नारी की फुफकार'

    नारी की फुफकार आज की हर अबला भारत की अब सबला बनकर जागी है निरीह दया की मूर्ति ना समझो  दबी चिन्गारी बन गयी बागी है ।  बहनों उठो पुकारता समय  पद्मिनी सा जौहर दिखलाओ  दुर्गावती,लक्ष्मीबाई सरीखी  समय पर रणचंडी बन जाओ ।  अब गया वक्त देहरी भीतर  बैठ सिंगार सजाने को  माथे तिलक लगा मचली  चूड़ी तलवार उठाने  को ।  तोड़ कर बन्धन पायल का  और सुहाग की लाली का  माँ अम्बा की ज्वाला बन  हाहाकार मचा दे काली का ।  भारत का गौरव मेरा यौवन  उसकी अस्मिता मेरी जवानी  शस्य श्यामला मातृभूमि पर  शत बार तरुणाई मेरी कुर्बानी ।  बाँझ,निपूती मत कह माँ  कुछ अस्तित्व हमारा मानो  हम भी ज़िगर के टुकड़े हैं  हमें सुता नहीं सुत जानो ।  आँधी में भी जला करेगी  निष्कम्प दीप की ज्योति  सोते से अब तो जगा दिया  माँ क्यों क्लान्त हो रोती ।  लिंग की भयावहता ने ललकारा  चलो माँ का कर्...

''मन से मावस की रात भगाएं'

मन से मावस की कारी रात भगाएं आओ हम सब मिलजुल कर  तम् के नीचे नेह का दीप जलाएं , भरें तमस के आँचल उजियारा घर पूनम की रात मीत बुलायें , स्नेह की ऐसी अलख जगायें मन से मावस की रात भगाएं , इक दूजे के ग़म शूल खींचकर दुःख-दर्द गले मिल बांटें हम  , कण-कण प्रकाश की लौ फेरकर  शुभ दीवाली सुपर्व मनायें हम , करें बात जब लगे संगीत सा झिलमिल फूटें सितारे फुलझड़ियों सा , रोमांच भरा हो  मिलन हमारा लगे अट्टहास पटाखों की लड़ियों सा , समत्व सत्ता का आलोक बिछाकर घर-घर जाकर मतभेद मिटाकर , खील बताशे खा-खाकर दे बधाई खुशियों की मन में लहर जगाकर , बरस-बरस का महान पर्व बन्धु ये  कड़वाहट का आओ म्लेच्छ भगायें , स्नेह की धार से नवकिरण बार  एकता का जगमग दीप जलायें । 

'शबनमीं मोती'

                  शबनमीं मोती अश्क़ों का जाम पीते उम्र तन्हा गुजार दी  एहसान आपने जो ग़म मुफ़्त में उधार दी।         वफ़ाओं के क़तरे भीगोयेंगे कभी दामन तेरा        जब चुपके से तोड़ेंगे ज़ब्त ख़यालों का घेरा।  लाखों इनायत करम आरजूवों प्यार में  लम्हा-लम्हा काटा सफ़र है बेक़रार में।          बहुत अख़्तियार था बेज़ुबाँ दर्द पे साथियों           उदास टूटे नग़मों की जमीं पे गर्द साथियों।  मुस्कराती रही दिल जला बेशरम चाँदनी  मखमली आँचल भिंगोती बेमरम चाँदनी।            

'हिंदी दिवस पर'

           हम सभी देश वासियों के लिए यह शर्म की बात है कि हिंदी राष्ट्र भाषा होते हुवे भी अपनों के द्वारा अपने ही देश में हिंदी दिवस मनाने का प्रयोजन जगह- जगह पर किया जा रहा है ।अंग्रेजी की गुलाम हिंदी है या हिंदी की गुलाम अंग्रेजी ,इसी पर आधारित मेरी यह रचना पढ़िए और अपनी राय सुझाइए।                                                    'हिंदी दिवस पर'   रफ्ता-रफ्ता सेंध लगा अंग्रेजी  घर में हिन्दी के हुई सयानी   मेहमाननवाजी में खायी धोखा  अपने ही घर में हुयी  बेगानी / जड़ तक दिलो दिमाग पे छाई  चट कर दी भावों भरा खजाना  बेअदब हर कोने ठाठ बघारती  मातृभाषा हिंदी भरती हर्जाना / ये कितनी ढीठ है घाघ अंग्रेजी  किस दुनियाँ से परा कर आयी  हम पर हावी हो ऐसे फिरती  घर में हिंदी की बनी लुगाई / वक्त की मार में हो गयी बीमार  अ...

'भारत का युवा वर्ग जाग्रत हो'

भारत का युवा वर्ग जाग्रत हो देश के नौजवानों में झंकार और हुँकार पैदा करने के लिए,जिसकी देश को आज सख़्त जरुरत है                                            ओ युवा सम्राट बता शक्ति का ओ ज्वार कहाँ अब जिन  हौसलों में  संसार  बदलने के  भाव निहित थे एक  समय  था  चारित्रिक  चिंतन  से  युवा  वर्ग  ही नई-नई  घटनाओं  को  क्रियान्वित   किया करते थे । प्रचंड तूफान,पराक्रमी मन होता था जिसका जिस दृढ़ विश्वासी की उर्जा होती थी चक्रवाती वो तेजस्वी,दुर्बल इतना कमजोर है आज क्यों जिससे महान हस्तियाँ भी थीं कभी थर्राती । प्रायः विश्व को दिशा निर्देशित करने वाला  आश्चर्य ? स्वयं ही कलुषित  कैसे हो गया है  युगनायक हिन्दुस्तान का युवा  कर्णधार ही आज सर्वहारा,दिग्भ्रमित कैसे हो गया है। राष्ट्रीय  विपन्नता  की जड़ तक  जाकर प्रश्न का  सार्थक हल  ...

" एकता की ताकत "

          एकता की ताकत  सीमाएं बंट गयीं तो क्या समीर एक है  भाव दुःख, दर्द एक  ही रुधिर  एक है  लहू का  रंग एक , एक पान  क्षीर  की  एक जैसी  प्यास,आस एक  नीर  की । रात दिन हमारे एक  शाम एक  सवेरा  चाँद तारे सूर्य रोशनी में सबका बसेरा एक ही  गगन  तले  धरा पर  एक  हम  फिर क्यों मन में दूरियां तमाम हैं भरम । राम ही रहिमन तेरा ईसा ही राम है  एक ही विधाता  के अनेक  नाम हैं  एक ही ख़ुदा  के औलाद हम सभी  एक ही जन्मदाता के संतान हम सभी ।  पुरखे हमारे एक ही सनातनी है जड़ जमीं  चन्द ग़द्दारों ने बांट दी जाति कौम सरज़मीं  चाह राह  एक  फिर  क्यों बंट  गये  हैं हम  किसने दिखाई राह  कि बहक  गये कदम । बोली भाषा वेश भिन्न रंग रूप हैं अनेक  अनेकता में एकता  की हो मिसाल एक  बनें भविष्य  विश्व का करनी  है साधना  अटूट सूत्र  में विविध...

'देश गान'

देश के नौजवानों के लिए        देश गान                                                              आन, बान,अस्मिता लिए लड़ीं लड़ाईयां, नौनिहालों शौर्य की सुन लो वो कहानियाँ जय भारती जय वीरभूमि जय जय भारती जय वीरभूमि जय।  ललकारी थीं माँएं बहने अपनी आँख के तारों को सौंपीं,स्वर्नाभूषण,चाँदी,मंगलसूत्र गले के हारों को स्वाभिमान के समर में ढहा कटुता की दीवारों को कर में तिलक लगा पकड़ायीं दुधारी तलवारों को मातृभूमि लिए होम हर कौम ने कर दीं जवानियाँ नौनिहालों शौर्य की सुन लो वो कहानियाँ जय भारती जय वीरभूमि जय  जय भारती जय वीरभूमि जय।   पराक्रमी मराठे जूझे थे मुगलों के अत्याचारों से वतन परस्ती का जज़्बा भर मतवाली हूँकारों से सत्ता छीनकर किया हुक़ूमत गोरी शुरमेदारों  से चूलें हिला दीं थीं  शूरवीरों ने इंक़लाब के नारों से शेर शिवाजी राणा प्रताप ने दीं अपनी कुर्बानियाँ नौनिहालों शौर्य की...

गण का अमर दीया

             गण का अमर दीया कलाएं संस्कृति पूजा ऋचाएं वेद सभ्यता हिंदवासी की विशेषता अनेकता में एकता     कोटि-कोटि शत्त नमन शीश में धवल चरण     माँ भारती का ये चमन गायें जन-गण-मन हम अनेक अंग हैं अखण्ड इस देश के स्वेद अर्ध्य के लिए तैयार पुत्र  शेष के    लहू का एक-एक बूंद मातृभूमि के लिए    गीत देशभक्ति का गाते रहें इसके लिए।  महान देवभूमि ये गुमान हमको देश पर हम  देशवासियों को नाज भाषा,वेश पर    ध्वज हमारी शान है झुकने न देंगे आन को     देश की प्रगति लिए कुर्बान देंगे जान को रणबांकुरों की सरजमीं धुरंधरों की ये धरा आपदाओं में उतरते हम सतत ही खरा     बुझ ना सकेगा कभी होशियार आज हम सभी    जलता रहेगा हर हिया गण का ये अमर दिया।