गीत
बंजर उर में प्रीत जगे जो गीत बन गएजब से सच्चे तुम मेरे मनमीत बन गए ।
उन्मद यौवन था ढला शाम सा
जिजीविषा कुम्हलाई-कुम्हलाई
प्रतिफल में केवल छली गयी मैं
हर कलि थी आशा की मुरझाई ।
हसरतों की सोई कलियाँ फिर जाग गईं
जब से बांहें तेरी गले का मेरे हार बन गईं ।
सुख दुःख की लड़ियाँ साथ लिए
टूटे नातों का मौन अभिशाप लिए
बढ़ रही अकिंचन थी जीवन पथ
पराजय का प्रतिक्षण ह्रास लिए।
दुर्गम राहों पर ढेरों पुष्प अवतरित हो गए
जब से उर मृदु गंध तुम उच्छ्वसित कर गए ।
रच दिया रीति में क्वाँरे सपने
अंगों में रस घोल गई पुरवाई
यौवन की बगिया महक उठी
रससिक्त पुनः हो गई तरुणाई।
अनुराग तेरे,मेरे अधरों के संगीत बन गए
जब से नगर वीराना तुम नवनीत कर गए ।
निष्ठुर जग से शिकवा गिला नहीं
खोने मिलने का सिलसिला यही
मृदु प्रणय का पाकर नेह निमंत्रण
पुलक थिरक उठा मन कण-कण ।
इन्द्र धनुषी रंग बिखरा अभिसिक्त हो गए
जब से कपोल गुदना तुम मुखरित कर गए ।
चमक रहा नभ का हर कोना
जनम-जनम का तेरा अपना होना
धड़कन में कुछ-कुछ बोल गयी
मनभावन मुस्कान है डोल गयी ।
मन उपवन रीता सावन सुरभित हो गए
जब से स्नेह वर्षा मन तुम सिंचित कर गए ।
मधु बैनी सी गीत सुनाउंगी मैं
करके सोलह सिंगार मिलूंगी
प्रीत सागर से भरी मन मटकी
काली रातों में चाँदनी छिटकी ।
हाथ छुड़ाकर हार जीवन के जीत बन गए
जब से अमर बन्धन बांध तुम हीत बन गए ।
''शैल सिंह''
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