गुरुवार, 16 अगस्त 2012

" एकता की ताकत "

          एकता की ताकत 

सीमाएं बंट गयीं तो क्या समीर एक है 
भाव दुःख, दर्द एक  ही रुधिर  एक है 
लहू का  रंग एक , एक पान  क्षीर  की 
एक जैसी  प्यास,आस एक  नीर  की ।

रात दिन हमारे एक  शाम एक  सवेरा 
चाँद तारे सूर्य रोशनी में सबका बसेरा
एक ही  गगन  तले  धरा पर  एक  हम 
फिर क्यों मन में दूरियां तमाम हैं भरम ।

राम ही रहिमन तेरा ईसा ही राम है 
एक ही विधाता  के अनेक  नाम हैं 
एक ही ख़ुदा  के औलाद हम सभी 
एक ही जन्मदाता के संतान हम सभी । 

पुरखे हमारे एक ही सनातनी है जड़ जमीं 
चन्द ग़द्दारों ने बांट दी जाति कौम सरज़मीं 
चाह राह  एक  फिर  क्यों बंट  गये  हैं हम 
किसने दिखाई राह  कि बहक  गये कदम ।

बोली भाषा वेश भिन्न रंग रूप हैं अनेक 
अनेकता में एकता  की हो मिसाल एक 
बनें भविष्य  विश्व का करनी  है साधना 
अटूट सूत्र  में विविध  संस्कृत है बाँधना। 
 
क्यों आन,अभिमान,अहम,शान  के लिये 
ज़मीर  बेचता  ईमान झूठे  नाम के  लिये 
कर्म मान धर्म चल  सत्य न्याय  की डगर 
मिटा तिमिर अज्ञान,ज्ञान ज्योति जलाकर ।

कुटुम्ब ये कबीला किसको दिखाता मेला 
सब छूट जायेगा यहीं जायेगा तूं अकेला 
कल आये या न आये भज नाम राम की 
न जाने  टूट जाये  कब ये डोर  सांस की ।

आवरण में छुपा लाख ले कर्मों का माजरा 
मन के द्वार  खोल खुद  की  झाँक ले जरा 
क्या  देगा तूं  जवाब ख़ुदा  के हिसाब  का 
उम्र भर का ब्यौरा मांगेगा जब वो आपका ।

आये थे  हाथ  खाली ,खाली  ही  जाना है 
माटी  का  मिल  वदन  माटी  में  जाना  है
रख लाज मानवता  की परमार्थ थोड़ा कर
द्वन्द आपसी मिटा नाता मन का जोड़ा कर ।

संगठन की ताकतों से शत्रु को पछाड़ दें
दुश्मन हों पस्त हमसे हम ऐसी दहाड़ दें
मिटायें भ्रष्ट  तन्त्र प्रण  स्वतन्त्र  देश की
हम सबको प्राण प्यारा  गणतन्त्र देश की । 

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 



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