ना मैं जानूं रदीफ़ ,काफिया ना मात्राओं की गणना , पंत, निराला की भाँति ना छंद व्याकरण भाषा बंधना , मकसद बस इक कतार में शुचि सुन्दर भावों को गढ़ना , अंतस के बहुविधि फूल झरे हैं गहराई उद्गारों की पढ़ना । निश्छल ,अविरल ,रसधार बही कल-कल भावों की सरिता , अंतर की छलका दी गागर फिर उमड़ी लहरों सी कविता , प्रतिष्ठित कवियों की कतार में अवतरित ,अपरचित फूल हूँ , साहित्य पथ की सुधि पाठकों अंजानी अनदेखी धूल हूँ । सर्वाधिकार सुरक्षित ''शैल सिंह'' Copyright '' shailsingh ''
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यादों पर कविता
यादें दिमाग से मिटती नहीं मिटाये भी सुकून से रहने नहीं देतीं तन्हाई में भी यादों के भंवर से आके तुम्हीं निकालो ...
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नई बहू का आगमन छोड़ी दहलीज़ बाबुल का आई घर मेरे बिठा पलकों पर रखूँगी तुझे अरमां मेरे । तुम्हारा अभिनंदन घर के इस चौबारे में फूल ब...
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" विश्वव्यापी व्याधि पर कविता " ऐसी विभीषिका से वबाल मचाई हो कॅरोना कैसी विश्वव्यापी व्याधि तूँ दुसाध्य सांस लेना । किन गुनाहों क...
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बे-हिस लगे ज़िन्दगी -- ऐ ज़िन्दगी बता तेरा इरादा क्या है बे-नाम सी उदासी में भटकाने से फायदा क्या है क्यों पुराने दयार में ले जाकर उलझा रह...
"आओ मिलजुल कर हम सब, तम् के नीचे नेह का दीप जलाएं"
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
dhanyabad koushik ji
हटाएंthanks
जवाब देंहटाएंdhanyabad
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