हिंदी दिवस पर कविता
रफ्ता-रफ्ता सेंध लगा अंग्रेजीघर में हिन्दी के हुई सयानी
मेहमाननवाजी में खाई धोखा
अपने ही घर में हुई बेगानी।
जड़ तक दिलो दिमाग पर छाई
चट कर दी भावों भरा खजाना
बेअदब हर कोने ठाठ बघारती
राष्ट्र भाषा हिन्दी भरती हर्जाना।
कितनी ढीठ है ये घाघ अंग्रेजी
किस दुनिया से परा कर आई
हम पर हावी हो ऐसे फिरती
घर में हिंदी की बनी लुगाई।
वक़्त की मार में हो गयी बीमार
अंग्रेजी महामारी ने पाँव पसारा
आलम आज कि सांसें गिन-गिन
हिन्दी ख़ुद की देहरी करे गुजारा।
मदर्स ,टीचर्स ,फादर्स ,फ्रैंड्स डे
चलन फलां ,ढेंका के बढ़ चढ़ के
इठलाती बोले साथ खेले अंग्रेजी
घर में हिंदी के सिर चढ़-चढ़ के।
हिंदी दिवस का दे एक निवाला
देश आजादी का विगुल बजाता
राष्ट्र भाषा का कर घोर अनादर
स्वदेशी हिंदी को ठगा है जाता।
सुनने में लगता कितना अजीब
हिंदी दिवस मनाना हिंदुस्तानी
दैवी भाषा तज किस बिना पर
अंग्रेजियत फैशन मन में ठानी।
शैल सिंह
यही दुर्भाग्य है स्वतंत्र भारत का । झकझोरती हुई रचना ।
जवाब देंहटाएंकटु मगर सत्य
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