मेरी ये फ़ितरत नहीं दोस्तों
बहारों का आनन्द लेती हूँ
मेरी ये फ़ितरत नहीं दोस्तों
कि हवा के संग-संग बह जाऊँ ,
लोग सूखे पत्रों के मानिन्द
बहक,हवा के साथ उड़ते हैं
जिधर का रूख़ हवा का हो
उधर ही हवा के साथ चलते हैं
माहौल के अनुरूप देखा है
कि हैं कुछ लोग ढल जाते
जैसी जिस जगह की मांग
वैसी तुरुप की चाल चल जाते ,
कड़वा सत्य बुरा होता मगर
मेरी ये फ़ितरत नहीं दोस्तों
सच से बहस में मैं मुकर जाऊँ ,
भला एक ही इन्सान कैसे
जब-तब कुछ नज़र आता
जुबां होती तो है एक मगर
लोग सूखे पत्रों के मानिन्द
बहक,हवा के साथ उड़ते हैं
जिधर का रूख़ हवा का हो
उधर ही हवा के साथ चलते हैं
माहौल के अनुरूप देखा है
कि हैं कुछ लोग ढल जाते
जैसी जिस जगह की मांग
वैसी तुरुप की चाल चल जाते ,
कड़वा सत्य बुरा होता मगर
मेरी ये फ़ितरत नहीं दोस्तों
सच से बहस में मैं मुकर जाऊँ ,
भला एक ही इन्सान कैसे
जब-तब कुछ नज़र आता
जुबां होती तो है एक मगर
तरह-तरह की बात कर जाता ,
लिबास आचरण के उनके
आश्चर्य,पल-पल बदलते हैं
लोग भलीभांति जानते फिर
लिबास आचरण के उनके
आश्चर्य,पल-पल बदलते हैं
लोग भलीभांति जानते फिर
क्यूँ कसीदे तारीफ़ों के गढ़ते हैं
मैं अडिग सही बात पे होती
मेरी ये फ़ितरत नहीं दोस्तों
गिरगिटों का चोला पहन आऊँ ,
कहें भले लोग बुरा मुझको
इसकी परवाह नहीं करती
ईश्वर क्या देखता ना होगा
चालबाज़ी चाल में है किसकी ,
चटुकारता की दुर्गन्धों से
भभक उठते हैं नथुने मेरे
उबटन लगाकर तेल संग
क्यों उंगलियां मालिश करें मेरे ,
सच-झूठ का बाँधूँ कलावा
मेरी ये फ़ितरत नहीं दोस्तों
आत्मा का क़त्ल कर जीत जाऊँ ।
शैल सिंह
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