मंगलवार, 11 अक्टूबर 2022

'' ग़ज़ल ''

ग़ज़ल 

महक से हो गई तर हमारी गली
उनके आने की आहट हवा दे गई,

जिस्म की डाल पर रंग चढ़ने लगे
बेसबर से नयन राह तकने लगे
ख़ुश्बू राहे-जुनूँ पर जहाँ ले गई 
उनके आने की आहट हवा दे गई,

खुली आँखों में सपने संवरने लगे
रात भी आज दिन मुझे लगने लगे
शबे-तारीक में चाँदनी जवां हो गई 
उनके आने की आहट हवा दे गई,

हरे हो गए शज़र उनके पदचाप से 
ख़िज़ाँ के फूलों पर सुर्ख़ी आने लगी
ख़ुशी लग कर गले से घटा हो गई 
उनके आने की आहट हवा दे गई,

प्यार में जाने क्या सिलसिले ये हुए
कंपकपाये थे जो लब गिले के लिए
करीब आते ही जाने कहाँ खो गई 
उनके आने की आहट हवा दे गई,

छाँह आग़ोश की पाये अरसा हुआ
बाँहों में भर नेह से जब मन को छुआ
हर छुवन दर्द की अचूक दवा हो गई 
उनके आने की आहट हवा दे गई,

लौटकर शाद आये घऱ मेरे सनम
शाम सुरमई गुलाबी सवेरा हुआ
सरे-मिज़गाँ बिठा कर रवा हो गई 
उनके आने की आहट हवा दे गई,

टूटकर शाख़ से यास थे हम-नफ़स 
सद-गुहर पा फ़िरोजां हुई शैल अब
जीस्त वीरां ताबिन्दा-पाईन्दा हो गई 
उनके आने की आहट हवा दे गई,

अर्थ--
राहे-जुनूँ--पगलाए हुए रस्ते ,शबे-तारीक--अँधेरी रात
शाद--प्रसन्न ,सरे-मिज़गाँ--पलकों पर ,
रवा--प्रभावित ,यास--मायूस ,सद-गुहर--हजारों मोती ,फ़िरोजां--चमक ,
ताबिन्दा--चमकदार ,पाईन्दा--स्थाई ,
                                                              शैल सिंह






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