बुधवार, 12 अक्टूबर 2022

एक हमारा कल था

 एक हमारा कल था 


अब तो उलझकर बचपना बस किताबी हो गया
हाथों में टैब,मोबाईल ठाठ बहुत नबाबी हो गया ,

अब तक है याद ताज़ी,छुटपन के प्यारे गाँव की
छपाछप खेलना बरसातों में काग़दों के नाव की ,

भोर की सुनहरी किरणें ढलती सुहानी शाम की
नीम,कीकर का दतुवन सेंक सर्दियों के घाम की ,

पक्षियों की चहचहाहट कागा के कांव-कांव की
प्रणाम करना,नित्य भिनुसार बुज़ुर्गों के पांव की ,

झरकन बसंती हवा की बरगद के घने छाँव की
गन्ध सोंधी महक माटी की  बचपन के ठाँव की ,

ओसारों में डलीं खाटें लुत्फ़ चाँदनी के रात की
यादें बहुत हैं रुलाती गुज़री घड़ियों के बात की ,

संयुक्त परिजनों का क़स्बा दादू के चौपाल की
पक्के कुंवना का पानी चने,अरहर के दाल की ,

मटर की घुघुरी,कच्चा रस, सरसों के साग की
चोखा भऊरी का लुफ़्त पके गोहरे के आग की ,

चिन्ता ना फ़िकर,ज़िम्मा ना ज़हमत जवाल की
गुडे्-गुड़िया याद झूला वो निमिया के डाल की ,

सखियों संग कुलांचें भरना अमुवा के बाग़ की
याद आये कुर्ती लगे जंबुल,टिकोरे के दाग की ,

घर के विशाल अहाते,चौबारे में किये राज की
सिमट गयी हा ज़िन्दगी दो कमरों में आज की ,

अज़ीब शहरी आबो-हवा,काम की न काज़ की
लूटी जाये रोज आबरू बहन-बेटी के लाज की ।  

कीकर--बबुल, जंबुल---जामुन                                           

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