रविवार, 11 नवंबर 2012

''मन से मावस की रात भगाएं'

मन से मावस की कारी रात भगाएं

आओ हम सब मिलजुल कर 

तम् के नीचे नेह का दीप जलाएं ,

भरें तमस के आँचल उजियारा

घर पूनम की रात मीत बुलायें ,

स्नेह की ऐसी अलख जगायें

मन से मावस की रात भगाएं ,

इक दूजे के ग़म शूल खींचकर

दुःख-दर्द गले मिल बांटें हम  ,

कण-कण प्रकाश की लौ फेरकर 

शुभ दीवाली सुपर्व मनायें हम ,

करें बात जब लगे संगीत सा

झिलमिल फूटें सितारे फुलझड़ियों सा ,

रोमांच भरा हो  मिलन हमारा

लगे अट्टहास पटाखों की लड़ियों सा ,

समत्व सत्ता का आलोक बिछाकर

घर-घर जाकर मतभेद मिटाकर ,

खील बताशे खा-खाकर दे बधाई

खुशियों की मन में लहर जगाकर ,

बरस-बरस का महान पर्व बन्धु ये 

कड़वाहट का आओ म्लेच्छ भगायें ,

स्नेह की धार से नवकिरण बार 

एकता का जगमग दीप जलायें । 

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