मंगलवार, 2 अगस्त 2022

लघु कवितायेँ

             लघु कवितायें 


आज मुद्दतों बाद उनसे हुआ सामना
उनसे नजरें मिलीं और फिर झुक गईं
फिर पहले सी हुई मन में वही गुदगुदी 
बंद पंखुड़ियाँ उल्लसित फिर खुल गईं ।

मुस्कुराऊं,खिलखिलाऊं बाग़ के कलियों सी 
तुम ख़ूबसूरत ग़ज़ल,शायरी लिखना मुझ पर
काश तुम बनो ज़िस्म मेरा बसे जां तुझमें मेरी
उर के कैनवास ऐसे चित्र उकेरना रंग भरकर । 

कब बरसोगी मेघा झमाझम मेरे इस शहर में
बारिश की फुहारों में भींगने को जी चाहता है
झूम कर बरसो हठ छोड़ो ओ सावन की रानी 
मन-वदन बौछारों से सींचने को जी चाहता है ।

तुम सूरज बनके चमको अग़र
तो मैं भी गुनगुनी धूप बन जाऊंगी
देख लो प्यार से जो मुझे भर इक नज़र 
तो मैं भी ज्योति तेरे नयनों की बन जाऊंगी
मुस्कान ग़र बिखेर दो जो मेरे मरू अधरों पर 
प्रीत की ओस से तृषित उर तेरा तर कर जाऊंगी । 

मेरे ख़्यालों,ख़्वाबों में ऐसे तो तुम रोज आते हो
मगर सामने आने से इतना क्यों हिचकिचाते हो
मुझे दरियाफ़्त है हाल उधर भी इधर जैसे ही है
मगर ख़ामोशी के आवरण में ये सब छिपाते हो 
अधूरी प्यास बिन तेरे है अधूरी ज़िदगी बिन तेरे
सब जानते हुए भी फिर क्यों तुम आज़माते हो ।


जिसे बोल और कह कर साकार ना कर सकी  
उसे कागज़ों पर उतार कर आकार दे दिया
कुछ ढाल लिया मन के उद्गारों को गीतों में 
कुछ तराश दिया ग़ज़ल,शायरी,शेरों में
कुछ अंतर के छलकते भावों को गुनगुना लिया 
कुछ फ़न जी लिया परकोटे में नृत्य के लहज़ों में 
कुछ धड़कती आकाँक्षाओं पर अंकुश लगा 
अरमानों को दफ़ना दिया लरजते हर्फ़ों में 
कुछ ख़ुद को समझाकर फड़फड़ा लिया 
क़तरकर पंखों को पखेरू भाँति बंद पिंजड़ों में।  

भूमिकाओं में वक़्त गंवाए अच्छा या
गीत,ग़ज़ल,कविता सुनाएं अच्छा
हमें मंच पर समां बांधना आता नहीं
अनर्गल प्रलाप मंच पर भाता नहीं
आप मुग्ध हो झूमेंगे बनावटी अदाओं पर
के मंत्रमुग्ध तालियां बजाएंगे कविताओं पर ।

हर दिल में बस जाऊँ वो मोहब्बत हूँ मैं
कभी बहन कभी ममता की मूरत हूँ मैं
मैंने आँचल में टांक रखे हैं चाँद सितारे
माँ के कदमों में बसी एक जन्नत हूँ मैं 
हर दर्द,ग़म को छुपा लेती सीने में
लब पे आये कभी ना वो हसरत हूँ मैं
मेरे होने से ही है यह कायनात जवां
ज़िदगी की बेहद हसीं हकीकत हूँ मैं
हर रूप रंग में ढल कर संवर जाती हूँ
सब्र की मिसाल हर रिश्ते की ताकत हूँ मैं
अपने हौसले से तक़दीर को बदल दूँ
ऐसी पंखों में अपने रखती महारत हूँ मैं 
सुन लो ध्यान से ऐ दुनिया वालों 
हाँ एक औरत हूँ मैं औरत हूँ मैं ।

शैल सिंह 

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