हनक बर्दाश्त नहीं होती अब सूरज के हण्टर की
बेचैन सभी चराचर हैं,चौपाये,बनजारे हैं बदहाल
तपन दरका रही धरती उमस से जां है खस्तेहाल
सुन धरा का अनुनय भी तरस आता नहीं तुझको
सुन धरा का अनुनय भी तरस आता नहीं तुझको
दहकना छोड़के सूरज जगत का देखो सुरतेहाल ।
सुबह से ही चढ़ाए पारा वदन झुलसा रहे हो तुम
तर-तर तन से चूवे पसीना अकड़ क्यूँ रहे हो तुम
फसलें सभी हुईं चौपट विरां-वीरां निरा खलिहान
तर-तर तन से चूवे पसीना अकड़ क्यूँ रहे हो तुम
फसलें सभी हुईं चौपट विरां-वीरां निरा खलिहान
घटा दुबक बैठी अंबर में हे इंद्रदेव करो कल्याण ।
सूखा ताल,पोखर,कुंआ गागरें रीती-रीती घर की
जल संकट बहुत भारी सुनले बादल जरा हर की
बड़ी आशा से नभ ताकता माथे हाथ धरे किसान
हनक बर्दाश्त नहीं होती अब सूरज के हण्टर की ।
जल संकट बहुत भारी सुनले बादल जरा हर की
बड़ी आशा से नभ ताकता माथे हाथ धरे किसान
हनक बर्दाश्त नहीं होती अब सूरज के हण्टर की ।
मुख म्लान निष्प्राण काया अश्रु से भरे नयन देखो
सुनो गुहार तितर की पपिहा की पिऊ रटन देखो
मरूधर प्यासी परदेशी रंगरसिया बन कर आजा
नन्हीं बूँदों का टिप-टिप सुना सरगम श्रवण देखो ।
मरूधर प्यासी परदेशी रंगरसिया बन कर आजा
नन्हीं बूँदों का टिप-टिप सुना सरगम श्रवण देखो ।
ना कोयलें कूंकतीं वृक्षों पे,ना नाचते मोर बागों में
तरकश ताने कर्कश धूप ना खेलते भौंरे फूलों में
पीले पात दरख़्त सूखा क़हर कुदरत का भीषण
बरस श्यामल घटा,गूंजा दे मल्हार निर्जन गुलों में ।
तरकश ताने कर्कश धूप ना खेलते भौंरे फूलों में
पीले पात दरख़्त सूखा क़हर कुदरत का भीषण
बरस श्यामल घटा,गूंजा दे मल्हार निर्जन गुलों में ।
क्यों भूले डगर बादल ज्येष्ठ ,आषाढ़ विकल बीता
प्रचण्ड साम्राज्य सूरज का जगत कुंए का है रीता
मौन क्षोभ निराशा से मेढकों,झींगुरों की पलटन
झमाझम बरसो मेघा गाये पुरवैया भी सहक चैता ।
प्रचण्ड साम्राज्य सूरज का जगत कुंए का है रीता
मौन क्षोभ निराशा से मेढकों,झींगुरों की पलटन
झमाझम बरसो मेघा गाये पुरवैया भी सहक चैता ।
चराचर---संसार के सभी प्राणी , चौपाये--मवेशी
शैल सिंह
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