सोमवार, 1 अगस्त 2022

लघु कवितायेँ

           लघु कवितायेँ 


उतावली सी बावली आँखें विकल 
ना जाने क्या ढूंढतीं हैं चारों तरफ़ । 

तूं ही मेरा श्रृंगार तूं ही मेरे रूप-रंग का नूर
तुझी से मेरी दुनिया तूं जीवन का कोहिनूर।  

किसपे नज़रें इनायत करें प्यार से
कोई दिखता नहीं तुम सा शहर में
देखा लम्बे सफ़र में बहुत दूर तक
कोई दिखता नहीं तुम सा दहर में ।

कभी हम भी हसीं थे जवां थे कभी हम
मग़र उम्र ने हमसे धोखा किया
कभी रस्क करता था अंजन नयन में  
मग़र आँखों ने हमसे धोखा किया ।


नहीं करती उसकी बेरूखी की परवाह मैं
पास हजारों इंतजामात हैं दिल बहलाने के
उसे पसन्द घर में छितरी खामोशी तन्हाई
मेरे मुरादों की ज़िद चलना साथ ज़माने के ।

यह घर प्रिये तुम्हारा आजा तुझे बुला रहा है
बड़ी हसरत से तेरे लिए फ़ानूस सजा रहा है
तेरे लिए ही खुला रखा है दिल का दरवाजा 
शिद्दत से राह ताके तेरा रास्ता निहार रहा है।

मृगनयनी जैसे हों नयन 
हिरनी जैसी चाल
अनारदाना से दांत हो
तोते जैसी सुतवां नाक 
कमर कइन सी बलखाती
लहराती नागिन से बाल
होंठ गुलाब की पंखुड़ी 
टमाटर जैसे लाल हों गाल
सुराही जैसी गर्दन हो
तराशा संगमरमर सा देह कमाल
ऐसी चाह अनोखी वर वालों की
बेशुमार दहेज हो वो भी बेमिसाल। 

ऐ ईश्क़ तुमसे ईश्क़ में
मिला मुझे बताऊं क्या
दर्द मिला ज़ख़्म मिला 
बदले वफ़ा के मिला सिला क्या
चैन गया,नींद गई सुकूं भी गया
गिरा ज़िग़र पे जाने और क्या-क्या ।

देख कर भी हमें इस तरह महफ़िलों में
ना पहचानने का  बेकार आडम्बर करो
भ्रम ये पालो न बेपरवाह हकीक़त से हूँ
ख़ुदा के लिए ना पाखण्ड  भयंकर करो 
ज़िन्दगी का सफ़र समझो लम्बा बहुत है
कभी न कभी जरूरत मेरी पड़ेगी जरूर
छोड़ देंगे अहबाब,कारवां भी मंझधार में 
तब तुम मुझे याद करोगे तोड़ सब गरूर 
मैं तो वही बदला जमाना पर बदली न मैं
किये एहसानों का भी बजाई डफली न मैं। 

शैल सिंह 

      


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