बुधवार, 3 नवंबर 2021

दीवाली पर कविता

                    '' दीवाली पर कविता ''



दीवाली का पर्व है आया देशवासियों अबकी बार दीवाली में
आओ चलो फिर से इतिहास दुहरायें अबकी बार दीवाली में ,

माटी के दीये जलाकर अपने संस्कृति की अलख जगायें हम 
परित्याग कर चाइनीज़ वस्तुएं, वस्तु स्वदेशी ही अपनायें हम ,

पुनर्जिवित कर परम्पराओं को दीपावली यादगार बनायें हम
राष्ट्रभक्ति के भाव के बीज,जन-मन में बोने को उकसायें हम ,

स्वदेशी वस्तुओं से बनें स्वावलंबी ऐसा महायज्ञ करवायें हम
जले स्नेहसिक्त दीप मन से मन में,मन के तिमिर मिटायें हम ,

घर बाहर पग-पग दीप जला हर्ष उल्लास से पर्व मनायें हम
देहरी सजा दीपों से माँ लक्ष्मी को घर सादर प्रेम बुलायें हम ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 

शैल सिंह 

3 टिप्‍पणियां:

  1. पांच लिंगों का आनन्द में मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार यशोदा जी

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (05 -11-2021 ) को 'अपने उत्पादन से अपना, दामन खुशियों से भर लें' (चर्चा अंक 4238) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    उत्तर
    1. अत्यंत खुशी के साथ-साथ आपका बहुत-बहुत आभार और धन्यवाद रविन्द्र जी हैपी दीवाली

      हटाएं

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