गूँगे कतरों में डूबे रहे दरिया की तरह
झूठी मुस्कुराहटों के सूखे होंठों पे दर्द
लफ़्ज़ बन उसे कर देंगे बज़्म में बेपर्द ।
पीये होती ग़र शराब हो जाता वबाल
इसलिये पी लिया समन्दर आँखों का
यदि होता हक़ीक़त सब पूछते सवाल
इसलिये छुपा लिया बवंडर आँखों का ।
किसे परवाह इन मासूम आँसुओं की
तैरे बेबसी की किश्ती सब्र आँख का
रहके पलकों की हद में,लब रख हँसी
करता रहता ख़ुदकुशी अब्र आँख का ।
ख़ुदा जानता है मेरे दिल में बात क्या
वो होता बेनक़ाब कह देती बात क्या
मुझको नहीं देना हर बात का जवाब
ख़ामोशी बता देगी दिल में बात क्या ।
ज़िन्दगी की भी कैसी हाय ये बेचारगी
रोने को विवश, ज़ब्त करने में लाचार
गूँगे कतरों में डूबे रहे दरिया की तरह
भीतर की तबाही के सह के अत्याचार ।
अनायास खर्च किया मैंने आँसू हज़ार
बेवफ़ाई के मंडी में हुई वफ़ा शर्मसार
चुपचाप बिखर जाऊँ या करुँ बयां दर्द
या काटूँ सज़ा उम्मीद की करुं इंतज़ार ।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह आँख
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 28 अक्टूबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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बहुत-बहुत आभार आपका रविन्द्र जी
हटाएंआभार आपका अनिता जी
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