सोमवार, 25 अक्तूबर 2021

सुशांत सिंह राजपूत पर कविता '' हम सबके दिलों में रहोगे जिंदा मरते दम तक ''

सुशांत सिंह राजपूत पर कविता 
हम सबके दिलों में रहोगे जिंदा मरते दम तक 


होता नहीं यक़ीं कि तुम इस जहाँ में अब नहीं
अश्क़ बहें तेरे याद में आँखें किसकी नम नहीं
मुक़र गई नींद नैयनों से बिलखते गुजरती रात
तुम अब लोक में नहीं कैसे दिलाएं यह विश्वास  ,

तस्वीर तेरी जब कहीं दिखाई देतीं आँखों को
छलक उठते हठात् आँसू भींगो देते गालों को   
जैसे ऋतु बरसात की आँखें रहतीं हरदम नम   
क्यों मौत को लगा गले दिये इतने तुम ज़ख़म ,

अच्छा हुआ दिन शोक का देखने से पहले माँ 
परलोक गईं सिधार वरना देखतीं यह हाल ना  
न जाने बीतती क्या माता पर कैसा होता मंज़र
असह्य वेदना सोच नयन में उतर आता समंदर ,

क्या होगा हाल पापा का इक बार भी न सोचा  
थे इकलौते भाई बहनों के इक बार ये न सोचा 
कैसी वेदना थी मन में ऊफ़ मथते रहे ख़ुद को 
कष्ट यही,लेते व्यथा बांट दंड देते नहीं ख़ुद को ,

मातम अरमां का मना मृत्यु का ख़याल छोड़ते
किसका डर,भय किस बात का मलाल बोलते
कचोटता है हृदय सहा अपार दर्द क्यों अकेले 
कोई हमदर्द काश समझा होता मर्म कैसे झेले ,

हम सबके दिल में जिंदा रहोगे मरते दम तक
कहाँ ढूँढें तुझको दिए नहीं पता तुम अब तक
दीप सभी तेरे नाम का जलाए  रखेंगे तब तक
इन्साफ़ तेरी मौत का दिला देंगे नहीं जब तक ,

अरे मौत के सौदागरों सुन लो कान खोलकर 
करना गुनाह कुबूल या जाना जहान छोड़कर
हम सबने ठान लिया तुम सब को नंगा करना  
सड़कों पे उतर करेंगे हम प्रदर्शन दंगा धरना ।


सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह

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