बुधवार, 27 अक्तूबर 2021

नज़्म '' मेरे लफ़्ज़ों का दर्द क्या है वो काग़ज़ ही जानते हैं ''

 '' मेरे लफ़्ज़ों का दर्द क्या है वो  काग़ज़ ही जानते हैं  ''


कहते हैं लोग मुझको दीया साँझ को जलाया करो
जबकि रहता मकाँ रौशन उसके यादों के चराग़ से
अब तलक ज़ेहन में ताज़ी है वस्ल की सुहानी रात
कभी हिज्र में भी ना हुईं रुख़्सत वो यादें दिमाग़ से ।

बहुत सोचा कर दूँ ख़यालों को आज़ाद ग़िरफ़्त से     
ख़ुश मिज़ाज यादें छोड़तीं ना पीछा दिल तोड़ कर 
शुक्र है कि कर लेती हूँ  दर्द बयां लिख काग़ज़ों पर 
वरना अब तक बिखर गई होती दिल कमजोर कर ।

जबकि मालूम ख़्वाब झूठे पर जिंदा रहने के लिए
मेरी तन्हाइयों,ख़्वाबों को और महका जाता है वो
ये कैसा अनूठा रिश्ता ज़ुदा हो भी नहीं होता ज़ुदा
मेरी हर रात,अलस्सुबह ग़ुलों से सजा जाता है वो ।

कैसे सीखूँ  श्वासों में बसा उसे  भूल जाने का हुनर
बड़ा दर्द होगा मर के जीना रातों का दर्द मिटाकर 
घुल-घुलकर भुला दिया ख़ुद को उसकी चाहतों में
उसकी आदत सी है रखा जिगर में दर्द संभालकर ।

सारे रिश्ते तोड़े उसने ताउम्र बस क़ुसूर ढूंढती रही 
जीती रही भरम में  समझी ना नज़रअंदाज़ उसका
इक लम्हे के प्यार लिए लुटा दी मैंने सारी ज़िन्दगी
उसके आने की उम्मीद में निगाहें देखें राह उसका ।

मेरे लफ़्ज़ों का दर्द क्या है वो काग़ज़ ही जानते हैं 
बेरंग लगे ज़िन्दगी ध्वनियाँ धड़कनों की शोर जैसे
उससे कह दे जा कोई लौट आये बैठी इन्तज़ार में
लगे सारा शहर उसके बिना वीरां हो गया हो जैसे । 

वस्ल—मिलाप, हिज्र—विछोह 

सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह

6 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमन मीना भारद्वाज जी ,अपने मंच पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार आपका

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  2. उसने तोड़े सारे रिश्ते हम अपना क़ुसूर ढूंढ़ते रहे
    जीती रही भरम में ना समझी नज़रअंदाज़ उसका
    इक लम्हे के प्यार की ख़ातिर जिंदगी लुटा दी मैंने
    उसके आने की उम्मीद में निगाहें देखें राह उसका ।..
    बेहतरीन अभिव्यक्ति .

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अनिता जी बहुत बहुत आभार आपका आप भावों को समझने का माद्दा रखती हैं इसलिये उनकी गहराईयों का अन्दाजा लगाती हैं आपकी परख भी बहुत तजुर्बे वाली है धन्यवाद

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