गुरुवार, 22 अक्टूबर 2015

गले लग प्रेम का सूता सुलझाओ तो जानें

गले लग प्रेम का सूता सुलझाओ तो जानें


ओ भारत के युवा प्रहरी जाबांज़  सिपाही
कभी ना होना गुमराह बेतर्कों के झांसों में ,

बो कर नफ़रत का बीज भीड़ जुटाने वालों
प्रेम मोहब्बत की ख़ुश्बू बिखराओ तो जानें
क्यूँ निस्प्रयोजन तुम उलझाते हो आपस में
गले लगा प्रेम का धागा सुलझाओ तो जानें ,

जन-मन की पूछ रही हैं सवालिया निग़ाहें 
कहाँ गयी पहले वाली रौनक़ त्योहारों की
सहमे भय,आतंक से बच्चे,बूढ़े,जवां पूछते 
कहाँ गयी पहले वाली धूमधाम बाज़ारों की ,

कैसे ग्रहण लगा जीवन के मुस्काते रंगों को 
कहाँ गया सम्मोहन हरे खेत खलिहानों का 
खुद जीओ देश ,समाज ,पड़ोस को जीने दो
होली जला,उपद्रवी कुंठित सोच विचारों का  ,

सपनों का महल बनेगा सजेगा,संवरेगा तब
जब रक्षा करना सीखोगे दर औ दीवारों की
अनेकता में एकता क्या होती  दिखलाना है   
आवश्यकता है बेहतर जीवन में सौहर्द्रों की ,

प्रेम मोहब्बत इतना प्रगाढ़ बलवान बनायें
सामाजिक समरसता के लिए आह्वान करें
इंसान,दोस्ती की तस्वीर उजागर कर देखें
मिलकर नफ़रत की खाई को शर्मसार करें ,

भारतीय समाज की मानवीयता औ रिश्ता
सहेज कर हमें तार-तार होने से बचाना है
सांस्कृतिक, सहिष्णुता का अखंड धरोहर 
है हिन्दुस्तान, हमें दुनिया को दिखलाना है,

मुश्किलों के समक्ष बुज़दिली नहीं दिखाना
शेर गर्जना सा हथियारों पर धार चढ़ाना है
भूल अतीत की कड़वी यादें धूमिल मन के   
पुराने जख़्मों पर मरहम का लेप लगाना है ,

                                             शैल सिंह










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