सोनिया गांधी …… ,
अपने घर से रुख़सती क्या ली भारत के राजकाज पर काबिज हो गई
दो चार भाई होगी छोड़ी यहाँ भाइयों के रूप में हजारों सेवक पा गई
घर की रहगुजर क्या भूली यहाँ हर रहगुजर पर तेरी तस्वीर लग गई
ओ चिड़िया तूं जिस शज़र पर बैठी उस शजर पर और चिड़िया नहीं बैठी
तुझे भारत में मोहब्बत ही नही मिली बल्कि सर आँखों पर बिठाया लोगों ने
हम ये कैसे कहें तुम्हें हुकूमत प्यारी नहीं क्या हुकूमत बिन चाहे ही मिल गई
तेरे चहरे ने इस सर जमीं का भाई चारा छिना एक से एक महारथियों का बाड़ा छीना
तेरे पास जो था वो तुझसे ज्यादा हमारा था तेरे प्रेम जाल ने हमसे हमारा छिना
यहाँ बहुत से बच्चों के सर का साया नंगा है बच्चों को भारत की संतान बनके रहने दे
तूने गिरिजा छोड़ दिया जो तेरा था तूं शिवाला का क्या कभी हो पायेगी
तकदीर बदलने के और भी रास्ते हैं भारत की बहू-बेटी बनके रह वरना सम्मान से चूक जाएगी
इक तूं ही बेवा नहीं हुई यहाँ हजारों लाखों बेवाएं हैं जो घर छोड़कर कभी मायके नहीं गईं
तेरी वजह से नफ़रतों की दीवार खड़ी हुई बस चन्द नासमझों चाटुकारों की मसीहा बनके रह गई
तूं यहाँ के मुसीबत की चिंता ना कर यहाँ ऊंचे कद वालों की कोई कमी नहीं
यहाँ के लोगों को तुझसे भी ज्यादा अपना देश प्यारा है
सियासत तुझसे नहीं तुझे लेकर सियासतजदां सियासत करते हैं क्योंकि वो
गुमराह हैं खुद को अलग कर इस घर को अपना घर नहीं समझते हैं ,
तूं इस मिट्टी को गर समझेगी अपनी धरती तो धरती का सीना तेरे लिए बड़ा हो जायेगा ।
शैल सिंह
अपने घर से रुख़सती क्या ली भारत के राजकाज पर काबिज हो गई
दो चार भाई होगी छोड़ी यहाँ भाइयों के रूप में हजारों सेवक पा गई
घर की रहगुजर क्या भूली यहाँ हर रहगुजर पर तेरी तस्वीर लग गई
ओ चिड़िया तूं जिस शज़र पर बैठी उस शजर पर और चिड़िया नहीं बैठी
तुझे भारत में मोहब्बत ही नही मिली बल्कि सर आँखों पर बिठाया लोगों ने
हम ये कैसे कहें तुम्हें हुकूमत प्यारी नहीं क्या हुकूमत बिन चाहे ही मिल गई
तेरे चहरे ने इस सर जमीं का भाई चारा छिना एक से एक महारथियों का बाड़ा छीना
तेरे पास जो था वो तुझसे ज्यादा हमारा था तेरे प्रेम जाल ने हमसे हमारा छिना
यहाँ बहुत से बच्चों के सर का साया नंगा है बच्चों को भारत की संतान बनके रहने दे
तूने गिरिजा छोड़ दिया जो तेरा था तूं शिवाला का क्या कभी हो पायेगी
तकदीर बदलने के और भी रास्ते हैं भारत की बहू-बेटी बनके रह वरना सम्मान से चूक जाएगी
इक तूं ही बेवा नहीं हुई यहाँ हजारों लाखों बेवाएं हैं जो घर छोड़कर कभी मायके नहीं गईं
तेरी वजह से नफ़रतों की दीवार खड़ी हुई बस चन्द नासमझों चाटुकारों की मसीहा बनके रह गई
तूं यहाँ के मुसीबत की चिंता ना कर यहाँ ऊंचे कद वालों की कोई कमी नहीं
यहाँ के लोगों को तुझसे भी ज्यादा अपना देश प्यारा है
सियासत तुझसे नहीं तुझे लेकर सियासतजदां सियासत करते हैं क्योंकि वो
गुमराह हैं खुद को अलग कर इस घर को अपना घर नहीं समझते हैं ,
तूं इस मिट्टी को गर समझेगी अपनी धरती तो धरती का सीना तेरे लिए बड़ा हो जायेगा ।
शैल सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें