जालिम करवटें
बेरहम करवटें जगा कर नींद से
भोर का विभोर सपना चुरा ले गईं ,
चाँद से बात कर रही थी ख्वाब में
पलकों पे तिरते परिंदे उड़ा ले गई ,
सूरज का साया दिखा छल किया
रात सितारों भरी छीन दगा दे गईं ,
रात भर नींद आई कहाँ याद में ,पर
ख़ुश्बू से तर ये सुबह-ए-समां दे गईं ।
शैल सिंह
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