कल्पना का रूप
तुझे रिझाने मन्दिर आई
पूजा अर्चन थाल सजाई
हे निष्ठुर भगवान सुनो
मेरी रीति गागर भर दो ।
कैनवास के कोरे फ़लक पर
कल्पना ने इक चित्र उकेरा है
मन के भावों पर अनुरंग चढ़ा
तूलिका ने बहु रंग बिखेरा है ।
जिस मंजिल की तलाश मुझे
ऐ राह ले चल उस तलक
कब तक भटकना है लिखा
किस लोक में है मेरा जहाँ
मन हर पल है सपना बुन रहा
कहीं ठहरा नहीं है अब तलक ।
इक आयाम चाहत को मिले
साकार कल्पना का रूप हो
गुलशन में मेरी ज़िंदगी के
हर रंग ,छाँह ,खिली धूप हो
तूं तो मन की सब है जानता
ऐ रब दे मन का मेरे भूप हो ।
शैल सिंह
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