''एक निवेदन''
ओ माटी के लाल
सात समुन्दर पार ना जाना
दूर देश परदेश में
ढेरों भरा ख़जाना अपनी
बोली भाषा वेश में।
चंद सुखों की खातिर छूटे
ये कुटुम्ब परिवार
शहर पराया अनजान नगर
छोड़ के ना जा ये घर बार।
हमजोली संग मनी रंगरेलियाँ
याद करो बचपन की गलियाँ
गाँव का मेला घर,चौबारा
दीया दीवाली फुलझड़ियाँ।
थाल सजा चन्दन औ रोली
हाथ बंधी रेशम की डोरी
नटखट बहना की प्यारी राखी
कहाँ मृदुल ममता की छाती।
कहाँ बजेगी पायल की रुनझुन
कहाँ सुनोगे चूड़ी की खनखन
चुनर में लिपटी लाज की लाली
कहाँ मिलेगी अनुपम दुल्हन।
होली का हुड़दंग ना होगा
ना झुला सावन की कजरी
रीति रिवाज त्यौहार ना कोई
ना व्यंजन पकवान कढ़ी।
ओ माटी के लाल
सात समुन्दर पार ना जानादूर देश परदेश में
ढेरों भरा ख़जाना अपनी
बोली भाषा वेश में।
शैल सिंह
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