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नव वर्ष की पूर्व संध्या की पार्टी में

नव वर्ष की पूर्व संध्या की पार्टी में  नए साल का आगाज़ महफ़िल सजी है   ढेरों खुशियां मनाने ग़म भुलाने के लिए, रब से करेंगे बंदगी हम सबकी ज़िंदगी का हर लम्हा सुन्दर ख़ुशगवार बनाने के लिए, आज की ठहरी हुई सी ख़ामोश ज़िंदगी में रंगीन नूरानी जलवा बिखराने के लिए, इक छोटी सी गुजारिश है आपसे दोस्तों  मुस्कराइये चिरागे दिल जलाने के लिए, कीमती वक़त लिया है आपका सज्ज्नों  इस पल को हसीं यादगार बनाने के लिए ।                                                 शैल सिंह

मेरी लाडो

      मेरी लाडो मिले सपनों का शहजादा राजकुमार  कब दिन दिखायेंगे रब ज़िया बेक़रार ।  मेरी लाडो रानी के हाथों में मेंहदी रचे  पांव गह-गहबर महावर लगे लालसा    माड़ो आँगन छवे और मंगल गान हो  बजे शहनाई द्वार घर सजे लालसा।  एक सपना संवारा मन के आसमान पे  घर मिले वर सुदर्शन ऊँचे  ख़ानदान के  ताकि चिंता ना फिकर करूँ कन्यादान पे  मेरी लाडो को मिले हर ख़ुशी जहान के ।  मर गई है भूख प्यास हर गई है निंदिया  नन्हीं मुन्नी सलोनी भई सयानी बिटिया  मन चैन ना दिन रैन क्या बताऊँ बिटिया  कैसा होगा दूल्हा राजा कब सगाई बिटिया।  मम्मी पापा कि दुलारी प्राण प्यारी लाड़ली  गर होता वश में रखती घर कुंवारी लाड़ली  भोली भाली मेरी कितनी तूं अनाड़ी लाड़ली  रीति दुनिया की निभानी हुई पाषाणी लाड़ली । भान कहाँ था अमानत ये पिया के नाम के  कहती बेटा सरीखे मेरी लाडो अभिमान से  जिसे नाज़ो से...

मैं मेरी तन्हाई

मैं मेरी तन्हाई  मन के आंगन बहती रहती यादों की पुरवाई इसीलिए भाई मुझको मैं मेरी तन्हाई । कुछ अतीत का कोना कुछ कल का ताना-बाना आज में जीती सुख से अपनी धुन का गा के गाना । जोड़ों सी मीठी टीस उठे कुछ दर्द भी ले अंगड़ाई लगे सुहानी रहस्यमयी दिन सी रात हुई अमराई , इसीलिए भाई मुझको मैं मेरी तन्हाई । भूल सकी ना जिसे कभी अपना होना साबित करतीं व्यर्थ की कितनी चीजें भी मन को परिभाषित करतीं । बीते कल की भग्न प्राचीरें वो आँखों में भर लाई  नीम बेहोशी सी खुश्बू में कितनी रातें जाग बिताई इसीलिए भाई मुझको मैं मेरी तन्हाई ।                                                                                        शैल सिंह 

सम्भल जाओ सत्तासीनों

सम्भल जाओ सत्तासीनों सम्भल जाओ सत्तासीनों रोज गिर रहा है राजनीति का स्तर निरन्तर   हर कोई आंके इक दूजे को कम से कमतर     दिन - दिन हो रहा सभी का चारित्रिक पतन   मूल्यों से दुश्मनी , नैतिकता का हो रहा हनन     ईमान बेच खा रहे हैं लोग ज़मीर बेच खा रहे मौका परस्त नेता लोग ही , जुबान बेच खा रहे   तुच्छ स्वार्थ पूर्ति के लिए खुद को गिरा दिया है मनुष्यता भी अब मर गई आदर्श मिटा दिया है   गम्भीर समस्यायें हैं क्या , मुद्दे ज्वलन्त क्या हैं मंहगाई की   मार   में गरीबी का उपचार क्या है हमारे मत का ले ख़जाना पतली गली दिखाते अब हमने भी ठान लिया कैसे मजा हैं चखाते बदलाव के इस दौर में ज़ुबानी वार कारगर नहीं संभल जाओ सत्तासीनों इस वाणी का असर नहीं   राष्ट्र और समाज   को राजनेता नीचा दिखा रहे हैं भद्दे - भद्दे तंज कस राजनीति का स्तर गिरा रहे हैं नमो - नमो , कमल के नाम से क्यों नींद उड़ गई है आरोपों के फेहरिस्त स...

भगवन तुमने ही तो कहा था

भगवन तुमने ही तो  कहा था मेरे मन वीणा का तार छेड़कर  निज व्यथा के गीत सुनाना मुझको मेरे मन मन्दिर का द्वार खोलकर बन साधक सदा रिझाना मुझको । कितनी बार नवाया शीश चरण में तेरे गिरिजाघरो,गुरुद्वारों,साईं की ड्योढ़ी मन कामना की खातिर भटक-भटक कितने मंदिरों,मस्जिदों,की चढ़ सीढ़ी । दुःख,संकट,क्लेश,व्यथा तम् आँगन मधुर-मधुर  कब गूँजेगी किलकारी सीना चीर  अधर  पट  खोलूँ  अगर तह  की  हिलक  उठेगी सिसकारी । गहरी आस्था और विश्वास  कवच पर सारा जीवन न्यौछावर किया तुझ पर कोई  खोट  हुई  या चूक  हुई मुझसे कि  पूजा रही अधूरी  रूठा  मुझ पर । दर  आँचल   फैला   बस माँगा  साईं सौगात  में  बिटिया  लिए  ख़ुशहाली बढ़ें  प्रगति  पथ  पर नित स्वामी  मेरे , बेटे के सपनें हो इंद्रधनुषी रंग आली । क्यों  तिरते इतराते पलकों पर आकर सपने सज संवर क्यों खुद ही इठलाते  क्यों सुख सागर की लहरों पर गोते ले  सपनों ...

''हिंदी साक्षरता दिवस पर ये रचना''

''हिंदी साक्षरता दिवस पर  ये रचना'' रफ्ता-रफ्ता सेंध लगा अंग्रेजी घर  में हिन्दी  के हुई  सयानी मेहमाननवाजी में खाई धोखा अपने  ही  घर  में हुई  बेगानी।        जड़ तक दिलो दिमाग पर छाई        चट कर दी भावों भरा खजाना        बेअदब हर कोने ठाठ बघारती        राष्ट्र भाषा हिदी भरती हर्जाना। कितनी ढीठ है ये घाघ अंग्रेजी किस दुनिया से  परा कर आई हम पर  हावी  हो  ऐसे  फिरती घर  में  हिंदी  की  बनी  लुगाई।       वक्त की  मार  में  हो गयी  बीमार       अंग्रेजी  महामारी  ने पाँव पसारा       आलम आज कि सांसें गिन-गिन       हिंदी  अपनी   देहरी   करे  गुजारा। मदर्स ,टीचर्स ,फादर्स ,फ्रैंड्स  डे चलन फलां ,ढेंका के  बढ़  चढ़के इठलाती बोले ,संग खेले अंग्रेजी घर  में  हिंदी...

दिल्ली,बाम्बे के रेप काण्ड और हालात पर 

दिल्ली,बाम्बे के रेप काण्ड और हालात पर           नारी जागृति के लिए  कर इतनी बुलंद आवाज कि घूंट अपमान का अंगार बरसाये सहनशक्ति सीमा तोड़ दे दुर्गा का विकराल अवतार अपनाये डरा बगावती मुहिम से, विभत्स व्यभिचार  वाकया ना दुहराये दूषित सोच का मिटे तमस,अस्तित्व की आ हम ज्योति जलायें  ऐसे कामान्ध पुरुषत्व पर धिक्कार जो काबू में ना रखा जाये किसी रक्षक का ऐसा हश्र हो दुबारा कभी सोचा ना ये जाये इतना क्षत-विक्षत करो अंग कि दुस्साहस तार-तार हो जाये बेमिसाल तस्वीर करो पेश ऐसी जग सारा शर्मसार हो जाये दिखा अंतर्द्वंद की वहशत ताकि दरिंदों को आगाज़ हो जाये  कि क्या हस्ती हमारी भी संसार में  अजूबा अन्दाज़ छा जाये, क्यूँ अग्नि परीक्षा दें हमीं क्यों चीरहरण हमारा हो सरे राह में हम अल्पवसना हों या पर्दानशीं या चलती अकेली हों राह में युवती,किशोरी,बालिका या प्रौढ़ा कहीं हों तनहा रात स्याह में कोई भी कौन होते है सीमाएं खींचने वाले हमारे हसीं चाह में ऐसा करो कि पाबन्द मीनारों की टूट...

भौतिकता की आँधी

भौतिकता की आँधी  हँसी अनमोल तोहफ़ा कुदरत का  हर शख्श हँसना,हँसाना भूल गया है  मौजूदा दौर ले जा रहा रसातल                        मशरूफ़ ज़िंदगी में हर कोई   कहकहा लगाना भूल गया है।  रफ़्तार ज़िन्दगी की तेज हो गई  दिल्लगी लब्ज ही भूल गए सब  जिंदादिल लोग नहीं मिलते अब  प्रेम,नेह की ऊष्मा उजास में भी  अजीब सा कुम्हलापन आ गया है।  हाथ -हाथ की शान बनी अब  हर हाथ में खेल रही मोबाईल  कर से कलम जुदा कर दी है  हर कान के पट इठला ठाठ से नाच-नाच कर झूल रही स्टाईल।   ख़त के सुन्दर भाव हजम कर  हर हर्फ़ निगल करती स्माईल  शह मात का खेल , खेल रही  कंप्यूटर की फटाफट अब तो  धड़ाधड़ देखो फाईल फर्टाईल।  भौतिकता की चकाचौंध में क्या  जीवन का फ़लसफा मालूम नहीं  दुरुस्त सेहत ,कामयाब राह की  मुकम्मल हमराज,ठहाका क्यों आज हर तबका ही भूल गय...

कृष्ण जन्माष्टमी पर मेरे द्वारा रचित भजन

          ''कृष्ण जन्माष्टमी पर मेरे द्वारा रचित कृष्ण भजन'' नन्द के दुलारे कबसे  खड़ी हूँ तिहारे दर पे , दर्शन को प्यासी अँखिया  तेरी मैं पुजारन रसिया--२  मीरा की भक्ति भर दो राधा की प्रेम पूजा , तुझमें रमा दूँ जीवन  भर दो ऐसा भाव भींगा ,  तम् सा अँधेरा मन में  ज्ञान का सवेरा भर दो , धनवान तुम तो लखिया  दर की मैं भिखारन रसिया --२ नन्द के दुलारे कबसे खड़ी हूँ तिहारे पे , दर्शन को प्यासी अँखिया तेरी मैं पुजारन रसिया--२ रास के रचईया स्वामी  तुम  अन्तर्यामी , भटकी हूँ पथ से अपने मैं हूँ खल कामी , मोह ,दंभ ,लोभ मिटा दो करुणा ,अनुराग जगा दो , पालनहार तुम तो लखिया  दर की मैं भिखारन रसिया --२  नन्द के दुलारे कबसे खड़ी हूँ तिहारे पे , दर्शन को प्यासी अँखिया तेरी मैं पुजारन रसिया--२                                           शैल सिंह ...

''गोल्डन पेन''

                              ''गोल्डन पेन''  होली का पर्व अब चार-पांच दिन ही रह गया है , इधर बेटे की बोर्ड परीक्षाएं भी चल रही हैं ,अति व्यस्तता के बावजूद भी सोचा होली के उपलक्ष्य में बहुत नहीं तो थोड़ा-थोड़ा ही करके घर की साफ सफाई शुरू कर दूँ ,इन पर्वों के चलते ही अन्दर तक की वार्षिक सफाई हो पाती है ,अन्यथा दैनिक दिनचर्या में तो इतना समय ही नहीं मिल पाता कि लीक से हटकर कुछ और किया जा सके ,और फिर गुझिया ,मठरी ,नमकीन भी तो बनाने हैं जिनको तैयार करने में अच्छी खासी कसरत और मशक्कत करनी पड़ती है। बच्चों की पढ़ाई ,स्कूल के झमेलों से कई बार बिल्कुल फुर्सत नहीं मिलती कि कोने अंतरों तक पहुँचा जा सके.       काफी सोच विचार के बाद सोचा क्यूँ ना आज का अभियान आलमारी से ही शुरू करूँ ,इधर बहुत दिनों से बाहर कहीं आना जाना नहीं हुआ था ,इसलिए आलमारी भी अधिकतर बन्द ही रही। आज जब सफाई के उद्देश्य से अस्त-व्यस्त पड़ी आलमारी को करीने से सुव्यवस...