भौतिकता की आँधी
हँसी अनमोल तोहफ़ा कुदरत का
हर शख्श हँसना,हँसाना भूल गया है
मौजूदा दौर ले जा रहा रसातल
मशरूफ़ ज़िंदगी में हर कोई
कहकहा लगाना भूल गया है।
रफ़्तार ज़िन्दगी की तेज हो गई
दिल्लगी लब्ज ही भूल गए सब
जिंदादिल लोग नहीं मिलते अब
प्रेम,नेह की ऊष्मा उजास में भी
अजीब सा कुम्हलापन आ गया है।
हाथ -हाथ की शान बनी अब
हर हाथ में खेल रही मोबाईल
कर से कलम जुदा कर दी है
हर कान के पट इठला ठाठ से
नाच-नाच कर झूल रही स्टाईल।
ख़त के सुन्दर भाव हजम कर
हर हर्फ़ निगल करती स्माईल
शह मात का खेल , खेल रही
कंप्यूटर की फटाफट अब तो
धड़ाधड़ देखो फाईल फर्टाईल।
भौतिकता की चकाचौंध में क्या
जीवन का फ़लसफा मालूम नहीं
दुरुस्त सेहत ,कामयाब राह की
मुकम्मल हमराज,ठहाका क्यों
आज हर तबका ही भूल गया है।
इक्कसवीं सदी में लुप्त हो रही
थातियाँ पुश्तैनी क्रिया कलापों की
धुंधला हो रहा दर्पण समाज का
तमाम नई व्याधियों के आघात से
दुनिया का हर इंसान जूझ रहा है।
बिखरते संस्कार ,टूटते परिवार
बिलुप्त मान्यता ,धर्मविहीन निति
खुद में ही कैद कर जीवन इन्सान
मनोरंजक साधनों के वशीभूत हो
असल ज़िंदगी से ही बहक गया है।
शैल सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें