भगवन तुमने ही तो कहा था
मेरे मन वीणा का तार छेड़कर
निज व्यथा के गीत सुनाना मुझको
मेरे मन मन्दिर का द्वार खोलकरबन साधक सदा रिझाना मुझको ।
कितनी बार नवाया शीश चरण में तेरे
गिरिजाघरो,गुरुद्वारों,साईं की ड्योढ़ी
मन कामना की खातिर भटक-भटक
कितने मंदिरों,मस्जिदों,की चढ़ सीढ़ी ।
दुःख,संकट,क्लेश,व्यथा तम् आँगन
मधुर-मधुर कब गूँजेगी किलकारी
सीना चीर अधर पट खोलूँ अगर
तह की हिलक उठेगी सिसकारी ।
गहरी आस्था और विश्वास कवच पर
सारा जीवन न्यौछावर किया तुझ पर
कोई खोट हुई या चूक हुई मुझसे
कि पूजा रही अधूरी रूठा मुझ पर ।
दर आँचल फैला बस माँगा साईं
सौगात में बिटिया लिए ख़ुशहाली
बढ़ें प्रगति पथ पर नित स्वामी मेरे ,
बेटे के सपनें हो इंद्रधनुषी रंग आली ।
क्यों तिरते इतराते पलकों पर आकर
सपने सज संवर क्यों खुद ही इठलाते
क्यों सुख सागर की लहरों पर गोते ले
सपनों के हिंडोले पर बैठा बिखर जाते ।
ना तो छोड़ा कभी निष्ठा भक्ति का छोर
सीना चीर अधर पट खोलूँ अगर
तह की हिलक उठेगी सिसकारी ।
गहरी आस्था और विश्वास कवच पर
सारा जीवन न्यौछावर किया तुझ पर
कोई खोट हुई या चूक हुई मुझसे
कि पूजा रही अधूरी रूठा मुझ पर ।
दर आँचल फैला बस माँगा साईं
सौगात में बिटिया लिए ख़ुशहाली
बढ़ें प्रगति पथ पर नित स्वामी मेरे ,
बेटे के सपनें हो इंद्रधनुषी रंग आली ।
क्यों तिरते इतराते पलकों पर आकर
सपने सज संवर क्यों खुद ही इठलाते
क्यों सुख सागर की लहरों पर गोते ले
सपनों के हिंडोले पर बैठा बिखर जाते ।
ना तो छोड़ा कभी निष्ठा भक्ति का छोर
ना ही कभी कर्त्तव्यों से थी कतराई
क्यों क़तर उड़ानों का 'पर' भगवन तूने
किया ललित सपनों का रंग धराशाई ।
क्या मिला शुचिता के पथ चल मुझको
कब श्रम की ही मिली अकूत मजदूरी
क्यों क़तर उड़ानों का 'पर' भगवन तूने
किया ललित सपनों का रंग धराशाई ।
क्या मिला शुचिता के पथ चल मुझको
कब श्रम की ही मिली अकूत मजदूरी
कहाँ लघु सपना ही मेरा साकार हुआ
क्या ईश के हृदय धन की ऐसी मजबूरी ।
क्यों स्वप्न लोक के भंवरों में उलझाकर
कभी कश्ती को दिये नहीं किनारा तुम
क्यों बनवाया नीड़ तूने भरभराते रेतों पे
क्या ईश के हृदय धन की ऐसी मजबूरी ।
क्यों स्वप्न लोक के भंवरों में उलझाकर
कभी कश्ती को दिये नहीं किनारा तुम
क्यों बनवाया नीड़ तूने भरभराते रेतों पे
निगलवा लहरों से दिये नहीं सहारा तुम ।
ना तो कभी ठिकाना सूरज पर माँगा मैंने
ना ही कभी की दिन में तारों की ख्वाहिश
ना तो कभी ठिकाना सूरज पर माँगा मैंने
ना ही कभी की दिन में तारों की ख्वाहिश
बस चाहत के पांवों टेसू रंग भर देना साईं
बस इत्ती सी ही तो की थी तुझसे गुज़ारिश ।
अरदास ख़ुदा की किया,अजान मस्जिद में
मंदिर में छेड़ तरन्नुम रत रही राम भजन में
चला गया जीवन सारा थाल सजा भरमाने में
ऐ पत्थर के देवता बस तुझे मनाने रिझाने में ।
शैल सिंह
बस इत्ती सी ही तो की थी तुझसे गुज़ारिश ।
अरदास ख़ुदा की किया,अजान मस्जिद में
मंदिर में छेड़ तरन्नुम रत रही राम भजन में
चला गया जीवन सारा थाल सजा भरमाने में
ऐ पत्थर के देवता बस तुझे मनाने रिझाने में ।
शैल सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें