मैं मेरी तन्हाई
मन के आंगन बहती रहती
यादों की पुरवाई
इसीलिए भाई मुझको मैं मेरी तन्हाई ।
कुछ अतीत का कोना
कुछ कल का ताना-बाना
आज में जीती सुख से
अपनी धुन का गा के गाना ।
जोड़ों सी मीठी टीस उठे
कुछ दर्द भी ले अंगड़ाई
लगे सुहानी रहस्यमयी
दिन सी रात हुई अमराई ,
इसीलिए भाई मुझको मैं मेरी तन्हाई ।
भूल सकी ना जिसे कभी
अपना होना साबित करतीं
व्यर्थ की कितनी चीजें भी
मन को परिभाषित करतीं ।
बीते कल की भग्न प्राचीरें
वो आँखों में भर लाई
नीम बेहोशी सी खुश्बू में
कितनी रातें जाग बिताई
इसीलिए भाई मुझको मैं मेरी तन्हाई ।
शैल सिंह
उम्दा भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी
कल 15/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
भावपूर्ण प्रस्तुति.......
जवाब देंहटाएंसुंदर !
जवाब देंहटाएंकृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें टिप्पणी करने में आसानी होती है !
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