यादों पर कविता

       यादें दिमाग से मिटती नहीं मिटाये भी 
       सुकून से रहने नहीं देतीं तन्हाई में भी
       यादों के भंवर से आके तुम्हीं निकालो 
       वरना जान निकल जायेगी यादों में ही ।

इतना भी ना आओ याद कि बारिश भी सहम जाए
बिन मौसम छाए बादल और भरी ऑंख बरस जाए
बिन तेरे इक पल भी संगदिल वक्त गुजरता ही नहीं 
दिल बड़ा मासूम है संभाले से भी सम्भलता ही नहीं ।

कैसे काटेंगे बिना तेरे ज़िन्दगी का सफ़र तन्हा-तन्हा
अब तो धड़कनें भी सुस्त होती जा रहीं लम्हा-लम्हा 
तेरी याद में जला दिल हमने उजाला किया है घर में 
चिराग़ों को बुझा के हर रोज गुजारा किया है शब में ।

सिले हैं होंठ मगर ऑंखों से बेरहम दुनिया पढ़ लेगी 
हमारे रिश्तों के धागों की नाहक कहानियां गढ़ लेगी 
लबों की ख़ामोशी भी उकताकर इक दिन बोल देंगी 
प्रणय प्रसंग के सारे राज जमाने के आगे खोल देंगी ।

ज़ख्म सहलाते हुए सोचा करती हूँ बैठ के अकेले में 
क्यूं दर्द में ढाल ज़िन्दगी फंस गई इश्क़ के झमेले में 
ये कैसी है मुहब्बत कि खुद को ही खोती जा रही हूँ 
छीन लिया पुरसुकून ज़िन्दगी का यूं रोती जा रही हूँ ।

शैल सिंह 
सर्वाधिकार सुरक्षित 

टिप्पणियाँ

  1. हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति।
    सादर।
    -----
    नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ७ अक्टूबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. यह इश्क़ नहीं आसां इतना तो समझ लीजे...
    भावपूर्ण रचना

    जवाब देंहटाएं
  3. आभार आपका जहां गलतियां वो भी बताया करें ताकि लेखन में निखार ला सकूं

    जवाब देंहटाएं

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