शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2025

यादों पर कविता

       यादें दिमाग से मिटती नहीं मिटाये भी 
       सुकून से रहने नहीं देतीं तन्हाई में भी
       यादों के भंवर से आके तुम्हीं निकालो 
       वरना जान निकल जायेगी यादों में ही ।

इतना भी ना आओ याद कि बारिश भी सहम जाए
बिन मौसम छाए बादल और भरी ऑंख बरस जाए
बिन तेरे इक पल भी सितमगर मेरे गुजरता ही नहीं 
दिल बड़ा नादान है संभाले से भी सम्भलता ही नहीं 

कैसे काटेंगे बिना तेरे ज़िन्दगी का सफ़र तन्हा-तन्हा
अब तो धड़कनें भी सुस्त होती जा रहीं लम्हा-लम्हा 
लब की ख़ामोशी भी इक दिन उकताकर खोल देंगी 
राजे उल्फ़त की सब बात दुनिया के आगे बोल देंगी

तेरी यादों में जला दिल  मैंने उजाला किया है घर में 
चराग़ों को बुझाकर हर शाम गुजारा किया है शब में 
सिले हैं होंठ मगर ऑंख से बेदर्द दुनिया पढ़ लेती है 
हमारे रिश्तों की डोर के सारे अफसाने खोल देती है 

छाले सहलाते हुए सोचा करती हूं बैठकर अकेले में 
क्यूं ढाल दर्द में ज़िन्दगी फंस गई इश्क़ के झमेले में 
ये कैसी है मुहब्बत कि खुद को ही खोती जा रही हूॅं
छीन लिया ज़िन्दगी का पुरसुकून यूं रोती जा रही हूॅं ।

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