क्षणिकाएं
1-
उसने कदर न जाना मेरे प्यार काबस वफ़ा पर वफ़ा मैं करती रही
ना जाना चलन उस दग़ाबाज़ का
बस धोखे पर धोखा मैं खाती रही,
रिश्ते बचाने के सारे जतन सब किये
आँच आये ना उसपे करम सब किये
अब तो उसके जिक्र पे बदल देते हैं बात
कोई जान पाये ना रिश्तों में अब है खटास
इक दिन आईना भी उससे नफ़रत करेगा
जिस दिन चेहरे से उसके नकाब उतरेगा ।
2-
जब होती उसकी मर्ज़ी मुझसे बात करता है
जब होती उसकी मर्ज़ी मुझको याद करता है
ये कैसा पागलपन मेरा दिल कितना है मासूम
के शिद्दत से उसकी मर्ज़ी का इंतज़ार करता है ।
3-
किस क़दर किया रुसवा मुझको तेरे प्यार ने
क्या-क्या ना कहा मुझको ज़ालिम जमाने ने
अब तुम्हीं करते हो सुलूक अजनवी की तरह
बता क्या आता मजा तुम्हें मुझको तड़पाने में ।
3-
उसके मासूम चेहरे के पीछे का शातिर दिमाग
ये मासूम दिल ना समझ सका उसका मिज़ाज
थी कितनी कपटी,लालची,अवसरवादी बेहिसाब
ना जाना वो चापलूसी में भी थी निपुण लाजवाब ।
4-
ये जो मेरी ग़ज़लों में कसक है वो मेहरबानी आपकी
दफ़न कर दी कितनी शायरी कागज़ों की शवागार में ,
बेहिसाब ज़ख़्मों के नासूर दर्द के निशान भी अज़हद
कर दी ख्वाहिशें निलाम ज़िन्दगी की,किसी बाजार में ।
अज़हद---बहुत
5-
मन की मौन पीर,हो अधीर मैंने कागजों पर उंड़ेला है
अक्षर-अक्षर भींगा दर्द से वो मेरी आँसुओं का रेला है
जख़्म देने वाले कोई ग़ैर नहीं वरन अपने ही खास थे
रूसवाईयों के कैसे-कैसे दर्द मेरी तन्हाईयों ने झेला है
6-
जान पर आ बनी है धर्म की सियासत
कैसे चाँदनी रात भी अब डराने लगी हैं
भय आतंक से दहलता शहर दर शहर
रात पूर्णिमा की भी आँख चुराने लगी है ।
7-
गर तृप्त नहीं है अन्तर्मन
समंदर भी प्यास बुझा नहीं सकता
गर यकीं है खुद की अक़्ल पे
कलंदर भी आग लगा नहीं सकता,
कलंदर--मदारी या बाजीगर
8-
हाल दिल का बताना चाहा
मगर उसे बता सके ना
तड़पकर रह गये हम
मगर उसे तड़पा सके ना
तरस गये उसकी आवाज सुनने को
मगर उसे बुलवा सके ना
बात करने का बहाना ढूंढ़ते रहे
मगर उसे कुछ जता सके ना ।
जो बताना चाहती नहीं जमाने से
उसे भी तो छुपा सके ना ।
शैल सिंह
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