रविवार, 4 सितंबर 2022

क्षणिकाएं

           क्षणिकाएं 


कहीं तुम भूल ना जाना कमल के फूल का निशां
कर्दम में भी खिलते देख लौट जाती है आ ख़िज़ां
कमल के जड़,तनें छैले नींव का विस्तार देखो ना
फ़ख़्र होता सुन नमो नाम जिसका क़ायल है जहां  ।

काटनी है सरसठ सालों की कांटों की बाड़ बोई 
अर्सों बाद तख़्तो-ताज पर विराजा है खास कोई
आटा,दाल,आलू,पेट्रोल की मंहगाई का ग़म नहीं
ऊंचा राष्ट्र का हो भाल ये  मन में भाव सबने बोई।

हवा है लहर है गदर है शहर में चारों ओर
खिलेगा अब कंवल ही यही गली-गली शोर
जल रही किसी की है फट रही है किसी की  
बदलाव की यही आँधी अब लायेगी नयी भोर।

आकांक्षा पूरा भारत रंगे भगवा भगवा
लौटकर फिर न आयेगा ये दिन दुबारा
ये गुलशन हमारा ये बागवां भी हमारा
हर चीज पर है बस हक़ हमारा हमारा ।

रब करे उनके जीवन में ना आये सवेरा
भगवा रंग से जिनको शिकायत बहुत है
जिनके ज़ेहन में हिन्द लिए नफ़रत का डेरा
वो जाएँ वहाँ जहाँ की करते वकालत बहुत हैं।

अभी तो हुए हैं जुम्मा-जुम्मा चार दिन
क्यों मोदी से सवालों की फेहरिस्त लम्बी
रब करें छोड़ें संपोले जल्दी जमीं हिन्द की
हमें बेदखल करने की तैयारी मंशा सर्पों की ।

सहेजकर ना रखियेगा ग़र मान भगवा का 
पछताईयेगा ऐसा दौर निकल जाने के बाद 
यही वक्त देशद्रोहियों के मंसूबों को कुचलना
तभी होगा हमारा हिन्दुस्तान आबाद ज़िन्दाबाद ।

कर्दम---कीचड़ 

शैल सिंह 







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