क्षणिकाएं
कर्दम में भी खिलते देख लौट जाती है आ ख़िज़ां
फ़ख़्र होता सुन नमो नाम जिसका क़ायल है जहां ।
काटनी है सरसठ सालों की कांटों की बाड़ बोई
अर्सों बाद तख़्तो-ताज पर विराजा है खास कोई
आटा,दाल,आलू,पेट्रोल की मंहगाई का ग़म नहीं
ऊंचा राष्ट्र का हो भाल ये मन में भाव सबने बोई।
खिलेगा अब कंवल ही यही गली-गली शोर
जल रही किसी की है फट रही है किसी की
लौटकर फिर न आयेगा ये दिन दुबारा
ये गुलशन हमारा ये बागवां भी हमारा
हर चीज पर है बस हक़ हमारा हमारा ।
भगवा रंग से जिनको शिकायत बहुत है
जिनके ज़ेहन में हिन्द लिए नफ़रत का डेरा
वो जाएँ वहाँ जहाँ की करते वकालत बहुत हैं।
क्यों मोदी से सवालों की फेहरिस्त लम्बी
रब करें छोड़ें संपोले जल्दी जमीं हिन्द की
पछताईयेगा ऐसा दौर निकल जाने के बाद
यही वक्त देशद्रोहियों के मंसूबों को कुचलना
तभी होगा हमारा हिन्दुस्तान आबाद ज़िन्दाबाद ।
शैल सिंह
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