रिमझिम पड़ें फुहारें जल की,बूँदें लगें सुखदाई
बहुत सुहावन अति मनभावन सावन का महीना
व्रत,त्यौहारों का पावन मास सावन मास नगीना ।
सुमधुर स्वर में गाये कोयलिया दादुर छेड़े तान
सुन के सिहर उठे करेजा विरही चातक के गान
आस हुए सब मन के पूरे उत्फुल्ल हुए किसान
लगे दुलहन सी सजी धरा हरित पहिर परिधान ।
रिमझिम पड़ें फुहारें जल की,बूँदें लगें सुखदाई
भरें हृदय में तरंग संगीत सा बहे मादक पुरवाई
छटा बिखेरे काली घटा सुषमा चहुँओर बिछाई
मन मोहे मोर का नर्तन नाचे पर फहरा अमराई ।
सोंधी-सोंधीं गंध उठे उपवन की महक निराली
इंद्रधनुष की आभा न्यारी खोल लटें बिखरा ली
गूँज उठे कजरी के धुन पड़े झूले नीम की डाली
जेठ की तपती गर्मी ,स्वेद से मुक्ति सबने पा ली ।
पहन कर हरी चूड़ी कलाई मेंहदी रच हथेली में
पी घर गईं सखी सब विहँस कर लाली डोली में
चंचल चाँद बहु छिछोरा छिप घटा की खोली में
उतर अटारी करे बेशर्मी पा तन्हा मुझे हवेली में ।
कल-कल बहे नदी की धारा उफनें ताल,तलैया
कहीं बेदर्द हुई पावस कहीं बहा ली बाढ़ मड़ैया
कहीं सूखे से लोग बेहाल मचा कुहराम हो भैया
मेंह वहाँ भी जा बरसो तरसे जहाँ वसुंधरा मैया ।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह
सावन का जीवंत चित्रण .
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार आपका संगीता जी
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏🙏
हटाएंसावन पर बहुत ही सुन्दर मनभावन सृजन।
जवाब देंहटाएंवाह!!!
सुन्दर वर्णन!
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏🙏
हटाएंसचमुच बूँदे बारिश की मन हरा कर जाती हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।
सादर।
बहुत-बहुत आभार आपका श्वेता जी
हटाएंसावन का सुंदर सराहनीय वर्णन ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जिज्ञासा जी
हटाएंअति सुन्दर रचना के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंमेरी रचना का अवलोकन करने के लिए बहुत-बहुत आभार संजय भास्कर जी
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