रविवार, 14 नवंबर 2021

शहीद की पत्नी का विलाप

लौट कर आने की बात कहकर गये
चाँदनी की रश्मि से भोर होने तलक
पथ निहारा की सारा दिन सारी रात 
आँखें पथरा गईं राहें देखते अपलक ।

हुआ इंतज़ार ख़त्म वे आए तो मगर
तन पर डाल तिरंगा शान से द्वार पर 
जिनके इंतज़ार में दिनरात की बसर
मनहूस सहर लाई  जाने कैसी ख़बर ।

अमर रहे,क्रंदन,ज़िन्दाबाद का नारा
पुष्पवर्षा,शोक धुन,रोदन हाहाकारा
जन समूह का इकट्ठा हुजूम देखकर  
थम गईं धड़कनें दृष्टि देखे जो मंजर ।

कर्तव्य के अनुरागी वे वतन के लिए 
शहादत का ये गौरव वरण कर लिए 
जिनके आस में जलाई दृगों के दीये
सात फेरों के वचन तोड़ वे चल दिये ।

कर्ज माटी का चुका वे फर्ज निभाए
श्वेतवस्त्र नजर कर मेरा अंग सजाए
करवा चौथ तीज व्रत का अंत कैसा
उम्र भर के विरह का दिया दंश ऐसा ।

झट बिंदिया सिंदुर मेरी पोंछ दी गई
तोड़ मंगलसूत्र चूड़ी भी कूंच दी गई
वैधव्य के पोशाक में शक्ल देखकर 
बहने लगे सब्र तोड़ आँख से समंदर ।

विछोह सहने की क्षमता लाऊँ कैसे
जो दरक रहा भीतर समझाऊं कैसे
वर्दी की लाज रखे वो अमर हो गये 
हमारी दुनिया लुट गई बेघर हो गये ।

सहर—सुबह , नजर---तोहफ़ा 
सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

2 टिप्‍पणियां:

  1. मन को झकझोरती सुंदर रचना🙏

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  2. महान शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करती और दिल को छू लेने वाली पोस्ट।

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