लौट कर आने की बात कहकर गये
चाँदनी की रश्मि से भोर होने तलक
पथ निहारा की सारा दिन सारी रात
आँखें पथरा गईं राहें देखते अपलक ।
हुआ इंतज़ार ख़त्म वे आए तो मगर
तन पर डाल तिरंगा शान से द्वार पर
जिनके इंतज़ार में दिनरात की बसर
मनहूस सहर लाई जाने कैसी ख़बर ।
अमर रहे,क्रंदन,ज़िन्दाबाद का नारा
पुष्पवर्षा,शोक धुन,रोदन हाहाकारा
जन समूह का इकट्ठा हुजूम देखकर
थम गईं धड़कनें दृष्टि देखे जो मंजर ।
कर्तव्य के अनुरागी वे वतन के लिए
शहादत का ये गौरव वरण कर लिए
जिनके आस में जलाई दृगों के दीये
सात फेरों के वचन तोड़ वे चल दिये ।
कर्ज माटी का चुका वे फर्ज निभाए
श्वेतवस्त्र नजर कर मेरा अंग सजाए
करवा चौथ तीज व्रत का अंत कैसा
उम्र भर के विरह का दिया दंश ऐसा ।
झट बिंदिया सिंदुर मेरी पोंछ दी गई
तोड़ मंगलसूत्र चूड़ी भी कूंच दी गई
वैधव्य के पोशाक में शक्ल देखकर
बहने लगे सब्र तोड़ आँख से समंदर ।
विछोह सहने की क्षमता लाऊँ कैसे
जो दरक रहा भीतर समझाऊं कैसे
वर्दी की लाज रखे वो अमर हो गये
हमारी दुनिया लुट गई बेघर हो गये ।
सहर—सुबह , नजर---तोहफ़ा
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह
मन को झकझोरती सुंदर रचना🙏
जवाब देंहटाएंमहान शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करती और दिल को छू लेने वाली पोस्ट।
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