शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

पुलवामा काण्ड पर लिखी पुरानी कविता

मौजूदा हालात पर

सर  बांध  तिरंगा  सेहरा  माँ 
कर  दुधारी   तलवार   थमा 
फौलादी  बाँहें   मचल   रहीं 
उबल रहा जिस्म में लहू जमा ।

माथे  तिलक  लगा विदा कर
प्रण है  रण में जाना  मुझको 
बैरी  दुश्मन  का  शीश  काट    
चरणों में  तेरे चढ़ाना  मुझको ।

चीत्कार रहा है सिहर कलेजा
पिता,पति,पुत्र  खोया है वतन
घोंपा है कायरों ने पीठ में छुरा 
शांति,वार्ता के सब व्यर्थ जतन ।

बूंद-बूंद कतरे-कतरे का देखना
लूंगा हिसाब जाहिल भौंड़ों का 
खौल रहा है घावों का गर्म लहू  
करूंगा घातक वार हथौड़ों का।

शैल सिंह

7 टिप्‍पणियां:

  1. देखना बूंद-बूंद कतरे-कतरे का
    लूंगा हिसाब जाहिल भौंड़ों का
    खौल रहा है घावों का गर्म लहू
    करूंगा घातक वार हथौड़ों का।

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  2. बहुत-बहुत आभार आपका श्वेता सिन्हा जी

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  3. वीरों की मनोदशा का मार्मिक कथन ।
    शहीद जवानों को सदा ही नमन ।

    जवाब देंहटाएं

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