मौजूदा हालात पर
सर बांध तिरंगा सेहरा माँ
कर दुधारी तलवार थमा
फौलादी बाँहें मचल रहीं
उबल रहा जिस्म में लहू जमा ।
माथे तिलक लगा विदा कर
प्रण है रण में जाना मुझको
बैरी दुश्मन का शीश काट
चरणों में तेरे चढ़ाना मुझको ।
चीत्कार रहा है सिहर कलेजा
पिता,पति,पुत्र खोया है वतन
घोंपा है कायरों ने पीठ में छुरा
शांति,वार्ता के सब व्यर्थ जतन ।
बूंद-बूंद कतरे-कतरे का देखना
लूंगा हिसाब जाहिल भौंड़ों का
खौल रहा है घावों का गर्म लहू
करूंगा घातक वार हथौड़ों का।
शैल सिंह
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज शनिवार 23 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
बहुत-बहुत आभार आपका श्वेता सिन्हा जी
हटाएंदेखना बूंद-बूंद कतरे-कतरे का
जवाब देंहटाएंलूंगा हिसाब जाहिल भौंड़ों का
खौल रहा है घावों का गर्म लहू
करूंगा घातक वार हथौड़ों का।
धन्यवाद कविता जी
हटाएंओजस्वी !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ज्योति जी
हटाएंवीरों की मनोदशा का मार्मिक कथन ।
जवाब देंहटाएंशहीद जवानों को सदा ही नमन ।
आपका बहुत-बहुत आभार नूपुरं जी
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