मशरूफ़ रहने दो मुझे मेरी तन्हाई में
नींद पलकों पर आ-आ मचलती रही
ख़ुमारी नैनों में रक्तिम घुमड़ती रही
स्मृतियां उद्वेलित करतीं रहीं रात भर
स्मृतियां उद्वेलित करतीं रहीं रात भर
आँखें जलपात्र उलीचती रहीं रात भर ।
निमिष भर के लिए ज्यों पलकें झपीं
बेदर्द हो गई विभावरी सुबह हो गया
बेदर्द हो गई विभावरी सुबह हो गया
कैद कर ना सके भोर के सपने नयन
रतजगा से भी कर्कश कलह हो गया ।
रतजगा से भी कर्कश कलह हो गया ।
होती कर में लेखनी लिख देती व्यथा
मन की लहरों पे मूक भाव तिरते रहे
होती तकरार अभिलाषा, अनुभूति में
मन की लहरों पे मूक भाव तिरते रहे
होती तकरार अभिलाषा, अनुभूति में
यादों के नभ वो परिन्दों सा उड़ते रहे ।
यादों नया दर्द देने का कर के बहाना
छोड़ो तन्हाई के आशियाने पर आना
ग़म को आश्वस्त किया है बड़े यत्न से
जाओ कहीं और ये शामियाने लगाना ।
छोड़ो तन्हाई के आशियाने पर आना
ग़म को आश्वस्त किया है बड़े यत्न से
जाओ कहीं और ये शामियाने लगाना ।
अनगिनत क़ाफ़िले मेरे पास यादों के
मशरूफ़ रहने दो मुझे मेरी तन्हाई में
बेवक़्त दस्तक़ ना दो दिल के द्वार पर
बेवक़्त दस्तक़ ना दो दिल के द्वार पर
न झांको अन्तस की अतल गहराई में ।
मधु यादों की जागीरें उर में सजाकर
मन के पिंजरे पर पहरे बिठा है दिया
लूट लो ना कहीं दौलत तन्हाईयों का
मन के पिंजरे पर पहरे बिठा है दिया
लूट लो ना कहीं दौलत तन्हाईयों का
ताक़ीद कर दरबान को बता है दिया ।
दिन रणक्षेत्र हुआ है रातें कुरूक्षेत्र सी
यादों तन्हाईयों में जंग प्रबल है छिड़ी
यादों तन्हाईयों में जंग प्रबल है छिड़ी
स्मृति ख़यालों में बाँहों में बैठ अंक में
कितने रूपों में लिबास बदल है खड़ी ।
कितने रूपों में लिबास बदल है खड़ी ।
क्या कहूँ सिलसिला यही रोज़मर्रा का
बोझल पलकों के वृतांत सुनाऊँ किसे
रैन दुहराकर करेगी फिर वही उपद्रव
रैन दुहराकर करेगी फिर वही उपद्रव
ख़यालों में आने से ना रोक पाऊँ जिसे ।
शैल सिंह
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