सोमवार, 15 अगस्त 2022

" मशरूफ़ रहने दो मुझे मेरी तन्हाई में "

 मशरूफ़ रहने दो मुझे मेरी तन्हाई में 

 
नींद पलकों पर आ-आ मचलती रही
ख़ुमारी नैनों में  रक्तिम घुमड़ती रही
स्मृतियां उद्वेलित करतीं रहीं रात भर  
आँखें जलपात्र उलीचती रहीं रात भर ।

निमिष भर के लिए ज्यों  पलकें झपीं
बेदर्द हो गई विभावरी सुबह हो गया
कैद कर ना सके भोर के सपने नयन 
रतजगा से भी कर्कश कलह हो गया ।

होती कर में लेखनी लिख देती व्यथा
मन की लहरों पे मूक भाव तिरते रहे
होती तकरार अभिलाषा, अनुभूति में
यादों के नभ वो परिन्दों सा उड़ते रहे ।

यादों नया दर्द देने का कर के बहाना
छोड़ो तन्हाई के आशियाने पर आना
ग़म को आश्वस्त किया  है बड़े यत्न से
जाओ कहीं और ये शामियाने लगाना ।

अनगिनत क़ाफ़िले मेरे पास यादों के 
मशरूफ़ रहने दो मुझे मेरी तन्हाई में 
बेवक़्त दस्तक़ ना दो दिल के द्वार पर 
न झांको अन्तस की अतल गहराई में ।

मधु यादों की जागीरें उर में सजाकर
मन के पिंजरे पर पहरे बिठा है दिया
लूट लो ना कहीं दौलत तन्हाईयों का
ताक़ीद कर दरबान को बता है दिया ।
 
दिन रणक्षेत्र हुआ है रातें कुरूक्षेत्र सी
यादों तन्हाईयों में जंग प्रबल है छिड़ी
स्मृति ख़यालों में बाँहों में बैठ अंक में
कितने रूपों में लिबास बदल है खड़ी ।

क्या कहूँ सिलसिला यही रोज़मर्रा का 
बोझल पलकों के वृतांत सुनाऊँ किसे
रैन दुहराकर करेगी फिर वही उपद्रव 
ख़यालों में आने से ना रोक पाऊँ जिसे ।  


                        शैल सिंह

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