बुधवार, 17 अगस्त 2022

" दूर नैनों से भी हो जुदा,वो दिल से कब हुए"

दूर नैनों से भी हो जुदा,वो दिल से कब हुए


ऐ सिरफिरी हवा ले आ,उनकी कुछ खबर
बिखरा ख़ुश्बू ऐसे कि,महक़ जाए ये शहर
या हवा दे आ उन्हें मेरा कुछ हाल या पता 
सिहर जायें सुन के दास्तां वे ऐसा हो असर,

ऐ सिरफिरी हवा ले आ,उनकी कुछ खबर
बिखरा ख़ुश्बू ऐसा कि,महक जाए ये शहर। 

जा कहो चितचोर से क्या गुजरती दिल पर 
कि क़यामत की रातें हैं कैसा घोलतीं ज़हर
उनके यादों के भंवर में लेती गोता फिर भी
जाने कैसी दरिया मैं  प्यासी रहती हर पहर ,

ऐ सिरफिरी हवा ले आ,उनकी कुछ खबर
बिखरा ख़ुश्बू ऐसा कि,महक जाए ये शहर। 

दिल आवारा फिरे यादों की पगडंडियों पर  
कट जाता दिन तो होतीं शामें वीरां अक्सर
बुझ जाता दीया पलकों का जल दरीचों पर 
दहलीज़ तन्हाई के रवि भी ढल ढाता क़हर ,

ऐ सिरफिरी हवा ले आ,उनकी कुछ खबर
बिखरा ख़ुश्बू ऐसा कि,महक जाए ये शहर। 

रूतों ने बदले रुख कई,बदलीं तारीखें नई
मगर शक्लें इन्तज़ार की नहीं बदलीं नज़र
लूटीं कभी खिज़ांयें कभी मौसम बहार का 
पर खिज़ां में भी आस का खड़ा रहा शज़र 

ऐ सिरफिरी हवा ले आ ,उनकी कुछ खबर 
बिखरा ख़ुश्बू ऐसा कि,महक जाए ये शहर। 

ख़ामोश सीने की पनाहों में हैं मौजें सहस्त्र 
सुलगते रेतों पर क्या जानें,वे जलता जिगर 
उनकी ही अता है कि,मेरी ज़िन्दगी आसेब 
क्या हर्फ़ों से समझेंगे वे कैसे कटता सफ़र ,

ऐ सिरफिरी हवा ले आ, उनकी कुछ खबर
बिखरा ख़ुश्बू ऐसा कि,महक जाए ये शहर। 

हृदय को हजारों ज़ख़म दे,बहारें गईं गुजर
मगर उनके यादों का न नजराना कीं इधर
दूर नैनों से भी हो जुदा,वो दिल से कब हुए
पतझड़ सरीख़ा जीवन फिर भी यादें अमर 

ऐ सिरफिरी हवा ले आ,उनकी कुछ खबर
बिखरा ख़ुश्बू ऐसा कि,महक जाए ये शहर। 

अता--दी हुई  ,आसेब--भटकती      

सर्वाधिकार सुरक्षित
                          शैल सिंह

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