कब आओगे खत लिखना

" कब आओगे खत लिखना "


निसदिन राह तकें सखी 
दो प्रेमपूरित नैन 
उन्हें कहाँ सुध थाह कैसे 
कटती विरह की रैन,

पाती प्रिय को लिखने बैठी
व्यथा उमड़कर लगी बरसने
पीर हृदय की असह्य हो गई
कलम क्लान्त हो लगी लरजने
अभिव्यंजना व्यक्त करूं कैसे ,

चाँदनी छिटकी गह-गह आंगन
यादें मुखर हो कर गईं विह्वल
अन्तर्मन फिर से संदल हो गया
भ्रान्तचित्त हो गए हैं प्रियवर 
भावप्रणवता व्यक्त करूं कैसे ,

अश्रुओं की जलधार में प्रीतम 
प्रीत की स्याही घोलकर
उर का अंतर्द्वंद लिख रही
पढ़ना मन की आंखें खोलकर 
रससिक्त भाव व्यक्त करूं कैसे ,

आँखों में अंजन बनकर
दिन-रात समाये रहते हो 
अन्तर में कर वसन्त सी गुदगुदी 
हृदय पात्र में कंवल खिलाये रहते हो
तुम बिन सपने अभि‌सिक्त करूं कैसे ,

सूख-सूख केश की वेणी सेज झरे  
निरर्थक अमृत-कलश अधर के
कैसे समझाऊँ प्रीत की रीत तुम्हें
लिख चार पंक्ति में पीर हृदय के
अतिरिक्त और जो व्यक्त करूँ कैसे

कितना और करूँ मनुहार काग की
कब आओगे ख़त लिखना
पगली पुरवा पवन बहे चंचल
कैसे रोकूं मन का अतिशय बहकना 
शेष अभिव्यक्ति व्यक्त करूँ कैसे ,

तूलिका ने रंग समेटा
मन का चित्रण अभी अधूरा
शब्द हठीले हो गए प्रियवर
रचूं किस रूप में वक्ष की पीड़ा
अनकही हृदय की व्यक्त करूं कैसे ।

भ्रान्तचित्त---बेखबर
सर्वाधिकार सुरक्षित
           शैल सिंह

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