शनिवार, 11 अगस्त 2018

प्रेम रस की कविता ,प्रेम गीत '' विरहाग्नि में जली हूँ जैसे रात-दिन मैं सखी ''

'' विरहाग्नि में जली हूँ जैसे रात-दिन मैं सखी ''


उनके आने की खबर जबसे कर्ण में घुली
हे सखि षोडशी हो गईं इन्द्रियां
जलतरंगों सी लहरें उठें तन-वदन
रातें लगने लगी भोर की रश्मियां,   
उनके आने की खबर जबसे कर्ण में घुली
हे सखि षोडशी हो गईं इन्द्रियां,

प्रीत की इक छुअन से परे होंगी जब 
लाज,संकोच,शर्म की पारदर्शी चुन्नियां
नेह भर नैन से बस निहारूंगी उन्हें
दृश्य अद्वितीय होगा मिलन के दरमियां,
उनके आने की खबर जबसे कर्ण में घुली
हे सखि षोडशी हो गईं इन्द्रियां,

गर्म सांसों के स्पर्श जब चूमेंगे नर्म ओष्ठ
दहकेंगी आलिंगन से वदन की टहनियाँ
नस-नस में होगा जब प्रवाहित प्रेमरस
मरूस्थल से तन की खिल उठेंगी कलियां,
उनके आने की खबर जबसे कर्ण में घुली
हे सखि षोडशी हो गईं इन्द्रियां,
    
करूंगी उनको विह्वल मौन संवाद से
मोहिनी चितवनों की गिरा-गिरा बिजलियाँ
विरहाग्नि में जली हूँ जैसे रात-दिन मैं सखी 
मुख पे डाल तड़पाऊंगी घूँघट की बदलियाँ ,
उनके आने की खबर जबसे कर्ण में घुली
हे सखि षोडशी हो गईं इन्द्रियां,

सजी नख से शिख तक मैं रिझाऊंगी उन्हें
खनका रंग-बिरंगी कलाईयों की चूड़ियां
कस कर बांँधूंगी प्रणय की रेशमी डोर में 
रखूंगी पलकों बीच ढांप जैसे दोनों पुतलियाँ
उनके आने की खबर जबसे कर्ण में घुली
हे सखि षोडशी हो गईं इन्द्रियां।

चुन्नियाँ--ओढ़नी 
सर्वाधिकार सुरक्षित
                     शैल सिंह

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