सोमवार, 22 अगस्त 2022

नज़्म ' जब से तोड़ा रिश्ता उससे हर ताल्लुक का '

जब से तोड़ा रिश्ता उससे हर ताल्लुक का



याद कभी आये ना वो मेरे सपनों में भी
सख्ती से दरबान पलकों को ताक़ीद कर दी कसम से
लौटा दी नफ़रत की सूद सहित पाई-पाई उसे भी
ज़िक्र कभी छेड़ें हवाएं भी ना ताकीद कर दी कसम से
जब से तोड़ा हर रिश्ता उससे ताल्लुक का
खुद को तन्हाई,गम,उदासी से फ़ारिग कर ली कसम से
मुद्दतों बाद मिला सुकून मेरी रूह को
दिल की विरां महफ़िल फिर गुलजार कर ली कसम से
कहांँ थी काबिल ही वो मेरे मिज़ाज़ के
सच में किस सांचे में ढाला था उसको ख़ुदा ने कसम से ।
                                                          

अगर ठान लो लक्ष्य हासिल है करना


घूंट इंतजार का होता कड़वा बहुत है
इंतजार इक दिन दिखाएगी मंजिल तुम्हारी ।
माना सफ़र इतना आसां नहीं है
मगर राह तकती है मंजिल तुम्हारी
अगर ठान लो लक्ष्य हासिल है करना
मिलके रहेगी हर सूरत में मंजिल तुम्हारी
कर्म और श्रम पे अपने ग़र है विश्वास इतना
स्वतः चलकर आयेगी तुम तक मंजिल तुम्हारी
छोड़ना ना कभी हार के भय से संघर्षों की ताकत
अवश्य ही होगी संघर्षों से प्राप्त तुम्हें मंजिल तुम्हारी ।
                   
                                                    

तरस आता लोगों की मुर्दा सोच पर 


साज़िशों के बाज़ार में आलोचनाओं का शिकार हुआ जाता हूँ
लोग कहाँ समझे मुझे फ़िजां के शोर में शर्मसार हुआ जाता हूँ
देश के लिए क्या ना किया तरस आता लोगों की मुर्दा सोच पर 
बेग़ैरतों की बेवफ़ाई,अपनी वफ़ाओं का कर्ज़दार हुआ जाता हूँ
मोहब्बत मुल्क़ से की बताओ देशवासियों इसमें दोष क्या मेरा
बस फेंकू और लफ्फाज़ी के सौग़ात का क़िरदार हुआ जाता हूँ। 

शैल सिंह 

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