कई दिनों की बारिश से आजिज होने पर

कई दिनों की बारिश से आजिज़ होने पर,

बन्द करो रोना अब बरखा रानी
बहुत हो गया जल बरसानी
भर गया कोना-कोना पानी ,

नाला उफन घर घुसने को आतुर,
जल भरे खेत लगें भयातुर,
रोमांचित बस मोर,पपिहा,दादुर ,

कितने दिन हो गए घर से निकले
पथ जम गई काई पग हैं फिसले
बन्द करो प्रलाप क्या दूं इसके बदले ,

कितने दिन हो गए सूरज दर्शन
तरसे धूप लिए मन मधुवन
कपड़े ओदे,चहुँओर सीलन

रस्ता दलदल किचकिच कर दी
मक्खी,मच्छर से घर भर दी
गुमसाईन सी दुर्गंध हद कर दी ,

बिलें वर्षा जल से भरीं यकायक
घूम रहे जीव खुलेआम भयानक
जाने कब क्या हो जाए अचानक ,

बहुत हो गई तेरे अति वृष्टि की
जा कहीं और बरस कई जगहें सृष्टि की
क़ाबिलियत दिखा अपने क्रूर कृति की ।

                          शैल सिंह

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