जाने किसने शरारत में गुगली है की
बदनाम करने पर तूला रिश्ता पाक का
चर्चा सारे शहर में तेरे,मेरे नाम का ,
अभी आँखों में बस था बसाया तुझे
दिल की किताबों में था छुपाया तुझे
अभी पन्ने पलटकर भी देखा नहीं
अभी अलकें ना खोलीं कहीं राज की
तुझे पलकों की छत पर भी रखा नहीं
जाने किसने फैलाया धुवाँ आग का
चर्चा सारे शहर में तेरे,मेरे नाम का ।
बदनाम करने पर तूला रिश्ता पाक का
चर्चा सारे शहर में तेरे,मेरे नाम का ,
अभी आँखों में बस था बसाया तुझे
दिल की किताबों में था छुपाया तुझे
अभी पन्ने पलटकर भी देखा नहीं
अभी अलकें ना खोलीं कहीं राज की
तुझे पलकों की छत पर भी रखा नहीं
जाने किसने फैलाया धुवाँ आग का
चर्चा सारे शहर में तेरे,मेरे नाम का ।
बस शराफ़त के तेरे थे कलमें पढ़े
तेरी चर्चा पे थे कुछ कसीदे काढ़े
भींड में भी नज़र का तुझे ढूंढ़ना
ज़िक्र पर तेरे,लब का महज़ खोलना
धड़कनों की ग़दर ही खबर बन गई
जाने किस गंध ने दी पता हाल का
चर्चा सारे शहर में तेरे,मेरे नाम का ।
कोंपलों ने अभी पांख खोला ना था
गुप्त तहखाने का राज डोला ना था
लफ़्ज़ निर्लज्ज हो कुछ भी बोले ना थे
ख़्वाबों के पांव बाँधी थीं पाज़ेब तरंगें
थीं स्वप्न के माथ चूमीं निगोड़ी उमंगें
जाने क्या हश्र होगा इस तूफ़ान का
चर्चा सारे शहर में तेरे,मेरे नाम का ।
जाने क्या हश्र होगा इस तूफ़ान का
चर्चा सारे शहर में तेरे,मेरे नाम का ।
सुलगती चिलम सी सीने में अगन
इश्क़ की आग तपता भट्ठी सा वदन
क्या तुझको भी ऐसे ज्वर की ताप है
तेरे दिल का भी द्वार खटखटाता कोई
तेरी कनपटियों पर गुनगुनाता भी है
कैसे ज़माने को हुआ भान उफान का
चर्चा सारे शहर में तेरे,मेरे नाम का ।
हवा गलियों में यूँ ही भटकती रहेगी
सूंघकर गंध जमाना कुछ कहता रहेगा
चलो बोयें हम तुम सितारों की फसल
उर के गोदाम भर लें प्रीत की हर नसल
क्यूँ ना बाँधें कलावा हम उड़ती ग़र्द को
जाने कैसे खुला सांकल अहसास का
चर्चा सारे शहर में तेरे,मेरे नाम का ।
मन में काती थी पुनि मैं तेरे नाम की
क्या उर तेरे भी रमी धूनी मेरे नाम की
इल्म हो जाता ग़र थोड़ा इस बात का
हो जाती दवा, हवा की हर बात का
ख़त लिखने को थोड़ा कलम थाम लो
जल उठे दीप गुलमुहर तले जज़्बात का
ख़त लिखने को थोड़ा कलम थाम लो
जल उठे दीप गुलमुहर तले जज़्बात का
चर्चा सारे शहर में तेरे,मेरे नाम का ।
गर्म हवाओं ने और आग भड़का दी हैं
ये अफ़वाहें हकीक़त सी लगने लगी हैं
रेशमी दस्तावेज अब मुलाक़ातों का
निग़ाहों से हुई गुफ़्तगू जो उस रात का
तुम भी जुबां के मुंडेरों तनिक लाओ ना
तोड़ें ख़ामोशियाँ भी कलई हालात का
चर्चा सारे शहर में तेरे,मेरे नाम का ।
सद्य---अभी
कलई--राज
शैल सिंह
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