१--
कभी काजल के मानिन्द बसे
हम उनकी बेजार निगाहों में
अब नौबत कि नजरें चुराकर
बगल से गुजरा करती उनकी ,
२--
मेरे ख़्वाबों में दबे पांव आता है कोई
आकर मुझे नींदों से जगाता है कोई ,
३--
कम्बख़्त नज़र एक सी आग लगाई दोनों तरफ
वहाँ करार उन्हें नहीं इधर चैन बेक़रारी को नहीं ,
४--
जल कर मोहब्बत में दिन-रात दिल खाक़ कर लाए
न बहारों का लुत्फ़ ले पाये न ख़िज़ाँ के साथ रह पाए ,
५--
वायदों का अलाव जलाकर इन्तज़ार किया बहुत
ऐतबार ने मगर क़त्ल किया है क़यामत की तरह ,
६--
पाठ मोहब्बत का क्या पढ़ाया सबको भूला दिया
तूने तो मासूम दिल पर ऐसा कब्ज़ा जमा लिया
पिला कर मय निग़ाहों की दिखा अदा के जलवे
दूर ज़माने से किया नकारा निकम्मा बना दिया ,
७--
वहाँ घर उनके आई डोली इधर सर मैंने भी सेहरा बाँधा
कितनी मजबूर मोहब्बत दुनिया से कर ना पाये साझा
घर दोनों के रखना आबाद खुदा इतना तो रहम करना
जैसे राधा संग कांधा, इक दूजे के दिल में बसाये रखना ।
कभी काजल के मानिन्द बसे
हम उनकी बेजार निगाहों में
अब नौबत कि नजरें चुराकर
बगल से गुजरा करती उनकी ,
२--
मेरे ख़्वाबों में दबे पांव आता है कोई
आकर मुझे नींदों से जगाता है कोई ,
३--
कम्बख़्त नज़र एक सी आग लगाई दोनों तरफ
वहाँ करार उन्हें नहीं इधर चैन बेक़रारी को नहीं ,
४--
जल कर मोहब्बत में दिन-रात दिल खाक़ कर लाए
न बहारों का लुत्फ़ ले पाये न ख़िज़ाँ के साथ रह पाए ,
५--
वायदों का अलाव जलाकर इन्तज़ार किया बहुत
ऐतबार ने मगर क़त्ल किया है क़यामत की तरह ,
६--
पाठ मोहब्बत का क्या पढ़ाया सबको भूला दिया
तूने तो मासूम दिल पर ऐसा कब्ज़ा जमा लिया
पिला कर मय निग़ाहों की दिखा अदा के जलवे
दूर ज़माने से किया नकारा निकम्मा बना दिया ,
७--
वहाँ घर उनके आई डोली इधर सर मैंने भी सेहरा बाँधा
कितनी मजबूर मोहब्बत दुनिया से कर ना पाये साझा
घर दोनों के रखना आबाद खुदा इतना तो रहम करना
जैसे राधा संग कांधा, इक दूजे के दिल में बसाये रखना ।
8--
सूना कदम्ब सूना जमुना किनारा
सूखकर देह राधा की हुई छुहारा
गोपी,गाय,ग्वालों की हालत बुरी
9--
तेरी बेरुखी पे तुझको कभी सदा न दूँगी
तेरे लिए इस दिल को कभी सजा न दूंगी
10--
जान पर आ बनी है धरम की सियासत
कैसे चाँदनी रात भी अब डराने लगी है
भय आतंक से दहलता शहर दर शहर
ऑंख पूर्णिमा की भी रात चुराने लगी है ,
सूना कदम्ब सूना जमुना किनारा
सूखकर देह राधा की हुई छुहारा
गोपी,गाय,ग्वालों की हालत बुरी
9--
तेरी बेरुखी पे तुझको कभी सदा न दूँगी
तेरे लिए इस दिल को कभी सजा न दूंगी
10--
जान पर आ बनी है धरम की सियासत
कैसे चाँदनी रात भी अब डराने लगी है
भय आतंक से दहलता शहर दर शहर
ऑंख पूर्णिमा की भी रात चुराने लगी है ,
11--
सत्य बोलना कड़वा होता है
झूठ बोलना पाप होता है
तो फिर बोलें तो क्या बोलें
पाप वाला सच बोलें
या कड़वा वाला झूठ बोलें
नहीं ये मुझसे नहीं हो सकता
गर्दन पे आरी चले तो भी
हवा के साथ नहीं हो सकती ,
तो फिर बोलें तो क्या बोलें
पाप वाला सच बोलें
या कड़वा वाला झूठ बोलें
नहीं ये मुझसे नहीं हो सकता
गर्दन पे आरी चले तो भी
हवा के साथ नहीं हो सकती ,
12--
मन से मन हैं सबके फटे हुए,
वाट्सएप,फेसबुक से हैं बस जुड़े हुए,
लाईक कमेंट भर है रिश्ता बस,
गूगल महाराज के कृत्रिम गिफ्टों से,
बर्थडे,एनीवर्सरी,पर्वों पर केक,फूल से
फेसबुक वॉल है पटता रहता बस,
प्रात के आरम्भ से लेकर दोपहर तक
सोती रात से गई रात तक
गुडमार्निंग,गुडनाईट से कुटकुट-टुकटुक
वाट्सएप है कहता रहता बस ।
वाट्सएप,फेसबुक से हैं बस जुड़े हुए,
लाईक कमेंट भर है रिश्ता बस,
गूगल महाराज के कृत्रिम गिफ्टों से,
बर्थडे,एनीवर्सरी,पर्वों पर केक,फूल से
फेसबुक वॉल है पटता रहता बस,
प्रात के आरम्भ से लेकर दोपहर तक
सोती रात से गई रात तक
गुडमार्निंग,गुडनाईट से कुटकुट-टुकटुक
वाट्सएप है कहता रहता बस ।
13--
इश्क़ क्या है
इश्क़ करना खता नहीं खता करवा देती है
बिना दुश्मनी के भी तलवार चलवा देती है
ज़ायज़ नाज़ायज़ इश्क अंधा करवा देती है
घर-परिवार से बग़ावत पर उतरवा देती है
ख़ुदा भी नज़र आता नहीं महबूब के सिवा
ज़माने की जखम से बेपरवा करवा देती है
इश्क़ तूफान सा बहता बेतरतीब दरिया है
इज्जत पे आंच आये हैवान बनवा देती है
इतिहास पलट के देखो इश्क़ के मतवालों
दुनिया दीवारों में ज़िंदा भी चुनवा देती है ।
शैल सिंह
बिना दुश्मनी के भी तलवार चलवा देती है
ज़ायज़ नाज़ायज़ इश्क अंधा करवा देती है
घर-परिवार से बग़ावत पर उतरवा देती है
ख़ुदा भी नज़र आता नहीं महबूब के सिवा
ज़माने की जखम से बेपरवा करवा देती है
इश्क़ तूफान सा बहता बेतरतीब दरिया है
इज्जत पे आंच आये हैवान बनवा देती है
इतिहास पलट के देखो इश्क़ के मतवालों
दुनिया दीवारों में ज़िंदा भी चुनवा देती है ।
शैल सिंह
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