ग़ज़ल
मेरे ख़्वाबों में आना दबे पांव तुम
चराग़-ए-वफा बुझ ना जाए कहीं
झिलमिला रहे लम्हें हंसीं यादों के
चराग़-ए-वफा बुझ ना जाए कहीं
झिलमिला रहे लम्हें हंसीं यादों के
लम्हा ये तन्हा गुजर ना जाए कहीं
अश्क़ों से गीली पलक की जमीं है
मोहब्बत में हम मिट ना जायें कहीं
माना मजबूर तूं पर मोहब्बत नहीं
अहदो-पैमान ही रह ना जाए कहीं
चांदनी शब में ढूंढतीं हैं निगाहें तुझे
वीरां मुंडेरों टिकी रह ना जाएं कहीं
नींद से रहती बोझिल मगर जागती
दर से आहट वो मुड़ ना जाए कहीं ।
अहदो-पैमान--वादे कसमें
शैल सिंह
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