अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर मेरे यह वक्तव्य
माँ,बहन,बेटी,पत्नी,प्रेमिका का
मत हममें बस फर्ज तलाशिये
आन्तरिक ताक़त पहचानिये
बस हमारा ज़ज्बा निखारिये।
क्यों हमारे लिए ही केवल
तय किये गए मानक
क्यों हमारे लिए ही केवल
खींची गईं रेखाएँ
क्यों खुदा ने भी की
बेईमानी लिंगभेद कर
मानक और पाबंदियाँ
दोनों लिङ्गों के लिए क्यों नहीं
क्योंकि ख़ुदा भी मर्द है
हमें कमजोर पहलू की
स्वामिनी बनाकर क्यों ?
पुरुष को हैवानियत और
दानवता का दर्प दिया
जब-जब दर्द मिला
मौला तेरे लिए बद्दुवा निकली
तुमने किया भेदभाव और
नारी मुखर हुई मजबूत होकर
अगर नारी सशक्त हुई है
अगर नारी क़ामयाब हुई है
अगर नारी ने अन्याय के ख़िलाफ़
आवाज़ उठाई है ,बेहूदे समाज से
यदि जंग लड़ी है ,तो खुद को जगाकर
भगवान उसमें तेरा क्या योगदान
ये ज़ज्बा जागा है तो अन्याय के कारण
अगर नारी सुदृढ़ हुई है तो भेदभाव के कारण
तुमने तो हमें गाय और देवियों की उपाधि देकर
हमें दबाने और कुचलने का स्वांग रचा
हमारी अस्मिता जब कुत्ते नोचते हैं
तूं लिलाहारी बनकर लीला देखता हैं
असली गुनहगार तो तूं है
दुआँख्खा कहीं का
हमीं चढ़ें दहेज़ की बलि
हमारा ही हो बर्बरता से शोषण
छेड़छाड़ अत्याचार हमीं पर
सभ्य व्यवहार की उम्मीद हमीं से
जहाँ हमारे सम्मान की रक्षा नहीं
जिस समाज द्वारा हमारी हिफ़ाजत नहीं
ऐसे समाज को थू
गन्दी मानसिकता को थू
हमने अब हथियार उठा लिया है
वीणा उठा लिया है नारी सशक्ति का
नारी सशक्ति का ।
शैल सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें