महिला दिवस पर
व्यवधानों से कर के दोस्ती
दिक्कतों की परवाह ना की
तोड़ पांवों की बेड़ियां उनने
ऊँची हौसलों को उड़ान दी ,
तय अंतरिक्ष की दूरी कर लीं
पाल-पोस ख़्वाबों को अपने
तराश मन्सूबों को निखार लीं ,
सशक्त कर भूमिकाओं को
ख़ुद को इक नई पहचान दीं
तोड़कर मानकों की परिधियाँ
कुचली मनोवृत्ति को संवार लीं ,
ख़ाहिश नहीं महिमामण्डन की
कोई चाहत नहीं सहानुभूति की
भभक उठीं सदियों की वेदनायें
उबलती सिसकियाँ जो दबी थीं ,
बेहतर समाज की वे भी भागीदार
प्रगतिशील हुईं आज़ की नारियाँ
परम्पराओं की तोड़ सींखचों को
प्रतिभावान हुईं हमारी भी बेटियाँ ,
जरुरत है समाज की सोच में
संकीर्ण नजरिये में बदलाव की
वरना विवश हो ले लेंगी हाथ में
सशक्त कर भूमिकाओं को
ख़ुद को इक नई पहचान दीं
तोड़कर मानकों की परिधियाँ
कुचली मनोवृत्ति को संवार लीं ,
ख़ाहिश नहीं महिमामण्डन की
कोई चाहत नहीं सहानुभूति की
भभक उठीं सदियों की वेदनायें
उबलती सिसकियाँ जो दबी थीं ,
बेहतर समाज की वे भी भागीदार
प्रगतिशील हुईं आज़ की नारियाँ
परम्पराओं की तोड़ सींखचों को
प्रतिभावान हुईं हमारी भी बेटियाँ ,
जरुरत है समाज की सोच में
संकीर्ण नजरिये में बदलाव की
वरना विवश हो ले लेंगी हाथ में
ख़ुद निडर कमान विधान की ।
शैल सिंह
शैल सिंह
महिला दिवस को सार्थक करती एक रचना।
जवाब देंहटाएंसबल बेटियों से ही सबल समाज का निर्माण होता है ... आज की नारियों को केंद्र बिन्दु में रख कर सार्थक रचना .... हार्दिक बधाई ...
जवाब देंहटाएंनारी दिवस को सार्थक करती रचना ..भावपूर्ण ...
जवाब देंहटाएंaap sabhi ka hardik aabhar
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