'' ज़मीर नीलाम कर शर्म न आई ''
[ १ ]
मेरी ख़ामोशियों से मत अंदाज़ लगा लेना
कि हम भूल गए तुझे गुनहगार बता देना ,
बड़ी सादगी से ख़ंजर कर दिल के आर-पार
हमनफ़स राब्ता तोड़ की नई राह अख़्तियार ,
तुझसे निज़ात पाकर ख़ुश हम भी कम नहीं
वरना खाते ज़िन्दगी भर धोख़े कोई ग़म नहीं,
फ़ितरत का दिखाया तूने है बेहतरीन नमूना
फुर्सत में बैठकर ख़ुद को दिखा लेना आईना ,
[ २ ]
ज़मीर नीलाम कर शर्म न आई नामुराद कितनी हुई रूसवाई
घात लगाकर तूने दिया है दोस्त ,धक्का विश्वास की सीढ़ी से
अर्से की वेरही बाड़ तोड़ ,नई बाड़ लगाई स्वार्थ की सीढ़ी से ,
सम्मानों की पसलियाँ चूर-चूर कर ,ख़ूब मान बढ़ाया रसूखों से
बेवफ़ाई का काँटा कैसे निकालूँ ,तेरे वेहयाई के ढींठ सुलूकों से ,
हम तो टिके रहे उसूलों पर ख़ैर ,तुम सिद्धांतों को रौंद बढ़े आगे
हमने ही मार्ग प्रशस्त किया औ ,हमीं को शिक़स्त दे छल से भागे ,
सरे बाज़ार मख़ौल उड़वाया है ,क्या ख़ूब बेमिसाल सम्बन्धों का
ज़मीर नीलाम कर शर्म न आई , सहारा बेतुके तर्क के कन्धों का ,
शैल सिंह
[ १ ]
मेरी ख़ामोशियों से मत अंदाज़ लगा लेना
कि हम भूल गए तुझे गुनहगार बता देना ,
बड़ी सादगी से ख़ंजर कर दिल के आर-पार
हमनफ़स राब्ता तोड़ की नई राह अख़्तियार ,
तुझसे निज़ात पाकर ख़ुश हम भी कम नहीं
वरना खाते ज़िन्दगी भर धोख़े कोई ग़म नहीं,
फ़ितरत का दिखाया तूने है बेहतरीन नमूना
फुर्सत में बैठकर ख़ुद को दिखा लेना आईना ,
[ २ ]
ज़मीर नीलाम कर शर्म न आई नामुराद कितनी हुई रूसवाई
घात लगाकर तूने दिया है दोस्त ,धक्का विश्वास की सीढ़ी से
अर्से की वेरही बाड़ तोड़ ,नई बाड़ लगाई स्वार्थ की सीढ़ी से ,
सम्मानों की पसलियाँ चूर-चूर कर ,ख़ूब मान बढ़ाया रसूखों से
बेवफ़ाई का काँटा कैसे निकालूँ ,तेरे वेहयाई के ढींठ सुलूकों से ,
हम तो टिके रहे उसूलों पर ख़ैर ,तुम सिद्धांतों को रौंद बढ़े आगे
हमने ही मार्ग प्रशस्त किया औ ,हमीं को शिक़स्त दे छल से भागे ,
सरे बाज़ार मख़ौल उड़वाया है ,क्या ख़ूब बेमिसाल सम्बन्धों का
ज़मीर नीलाम कर शर्म न आई , सहारा बेतुके तर्क के कन्धों का ,
शैल सिंह
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