मेरी पहचान 'शैल शिखर' सा
ग़र दे न सको कभी मान तो अपमान ना करो
कभी ख़ुद के सस्ते नाम पर अभिमान ना करो ।
मैं कोई नामचीन हस्ती की आवाज नहीं हूँ
फिर भी किसी परिचय का मोहताज़ नहीं हूँ
गीत,ग़जल बस शगल मेरा अन्दाज़ यही हूँ
'शैल शिखर' सी हूँ शैल बस आगाज़ यही हूँ ।
दर्द-ए-ग़म ढाल गीतों,ग़ज़लों में मैंने गा लिया
इस तरह नई दुनिया मैंने ख़ुद की बना लिया
जब-जब किसी ने भेंट की तौहीन की सौग़ात
दिल में ज़ज्ब कर उसे मैंने ग़ज़ल बना लिया ।
आप की ही दी सौग़ात फिर क्यों हैं बात पूछते
क्यूँ आप ऐसे हँसते हुए दुखते हैं लम्हात पूछते ।
सब पूछते क्यों सारी रात 'शैल' जलता है दीया
जिस तरह शमा ये रात भर जल कर जलायी है
जानती हूँ साथ मेरे सारी रात जल रोया है दीया ।
क्यों बार-बार क़त्ल मेरे सपनों,ऐतबार का हुआ
क्यों दिल पर कभी असर न इख़्तियार का हुआ
क्यों चमन को करते पतझड़ चमन के बहार ही
ऐसा हाल साहिलों पे कश्ती के पतवार का हुआ ।
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