ऐ कविता
ना जाने है क्यों सुस्त धार मेरे कलम की
जो लहराते उर के समंदर की सरदार थी
छटपटाता है अन्तस उमड़ते कितने भाव
उदास मन को है कविता आज तेरी तलाश
बुझा दे कागज़ पर अनकहे भावों की प्यास
अश्रु की बूंद से लिख दे कथा ज़िन्दगी की
हंसा दे रूला दे मिटा दे तृषा ज़िन्दगी की
मुस्कुराये सदा कविता में मन का अहसास
ऐ ख़ामोश शब्दों अश्क अब पिया नहीं जाता
मन के गहरे समंदर का सफ़र तय किया नहीं जाता
मन के उद्गारों से इतना ना रहा करो नाराज़
लौटा दो फिर से मेरा वहीं पुराना अन्दाज
लफ़्ज़ों का खजाना चूक ना जाये कहीं
ज़िन्दगी ही ना कर जाये बगावत कहीं
पीरो दे खूबसूरत सपने कविताओं में
संजो दे सुनहरी यादें कविताओं में
महफूज़ कर दे खट्टे मीठे अनुभवों के लहर
अवशेष पल हैं बस ,उम्र के ढल रहे पहर
हर विधा के दीप प्रज्ज्वलित कर दो कविताओं में
ना जाने कब ज़िन्दगी की धूप छुप जाये घटाओं में।
शैल सिंह
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जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 10 सितंबर 2025 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार आपका पांच लिंकों का आनन्द पर मेरी कविता सम्मिलित करने के लिए
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका
हटाएंनिश्छल ,अविरल ,रसधार बही कल-कल भावों की सरिता , अंतर की छलका दी गागर फिर उमड़ी लहरों सी कविता , बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंमेरी कविता अन्तस्तल तक उतारने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
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